” नई चढ़ाई चढ़ना है “
गीत
देश बना सिरमौर अभी ना ,
उठो बहुत कुछ करना है !
है विकास की मंजिल ऊँची ,
नई चढ़ाई चढ़ना है !!
अभी गरीबी खतम हुई ना ,
जीवन रेखा नीची है !
कहाँ जगी सरकारें , नेता ,
रखी आँख जो मींची हैं !
सपन रेत से रोज ढहे हैं ,
नये निशां अब गढ़ना है !!
अभी कृषक समृद्ध कहाँ हैं ,
करजे उन पर भारी हैं !
काश्त बँटी टुकड़े टुकड़े में ,
आय घटी लाचारी है !
भू माफिया नज़र गढ़ाये ,
इनसे भी तो लड़ना है !!
बेकारी बैठी मुँह खोले ,
रोजगार ना हाथों में !
लूटपाट है , रंगदारी भी ,
पनपी बातों बातों में !
सहभागी सब हों विकास में ,
पाठ नये ये पढ़ना है !!
औधोगिक विकास है धीमा ,
खड़ी सामने मंदी है !
भ्रष्टाचार जो पनपा उसमें ,
नीयत सबकी गंदी है !
लूट गये जो धन जनता का ,
उन्हें जेल अब सड़ना है !!
थमी थमी सी राह सभी है ,
करवट समय बदलता है !
हम भी बदलें अब मिजाज को ,
मन भी यों ही मचलता है !
भला देश का सबसे ऊपर ,
दोष किसे ना मढ़ना है !!
राजनीति के बदले नायक ,
जन से बढ़ती दूरी है !
नई पीढ़ी अब देश सँवारे ,
यह भी हुआ ज़रूरी है !
नये गढ़े आदर्श सभी हम ,
पीले पात जो झड़ना हैं !!
सत्यवान हों , कर्मठ भी हों ,
भुजदंडों से बलशाली !
देशप्रेम से सिंचित रौंपे ,
हर आँगन डाली डाली !
बैरभाव ना कहीं कुटिलता ,
नये नये नग जड़ना है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )