नई उम्र की नई फसल
नई उम्र की नई फसल
‘रोहन, तुम्हें प्रधानाचार्य जी बुला रहे हैं’ चपरासी ने आकर कहा। रोहन अभी दसवीं क्लास में पढ़ रहा था। रोहन मुस्कुराता हुआ उठा और इससे पहले कि वह क्लास में पढ़ा रहे अध्यापक की स्वीकृति मांगता, अध्यापक महोदय ने उसे जाने के लिए कह दिया। अध्यापक अपने विषय का जो पाठ पढ़ा रहे थे वह काफी महत्वपूर्ण था। रोहन के जाते ही उन्होंने पाठ को वहीं विश्राम दिया और पुराना पाठ पढ़ाने लगे।
‘सर, आज वाले पाठ को आगे नहीं पढ़ायेंगे क्या’ एक छात्र ने हाथ उठा कर पूछा। ‘यह पाठ बहुत महत्वपूर्ण है, रोहन के आते ही फिर से आरंभ कर दिया जायेगा’ अध्यापक महोदय ने कहा। अन्य विद्यार्थी गुपचुप एक दूसरे को देखने लगे जो अध्यापक महोदय की नज़रों से नहीं छुपा। रोहन के पिता बहुत धनाढ्य थे और शिक्षा विभाग में उच्च पद पर आसीन थे। यह तथ्य स्कूल में पढ़ने वाले रोहन की क्लास के अलावा लगभग सभी अध्यापक और प्रधानाचार्य भी जानते थे। जिस तरह से स्कूल के प्रधानाचार्य महोदय और क्लास के अध्यापक रोहन की ओर ध्यान देते थे वह किसी से छुपा नहीं रहता था।
क्लास में पढ़ाई के समय पढ़ाते हुए अध्यापक रोहन की ओर देखकर हल्के से मुस्कुरा देते थे जिससे रोहन का मनोबल बढ़ जाता था। अन्य विद्यार्थी भी अक्सर इस बात का संज्ञान लेते रहते थे। इसके अलावा अध्यापक जब भी क्लास में विषय संबंधित प्रश्न पूछते तो उनकी यह कोशिश रहती थी कि रोहन से तभी पूछा जाये जब उसका हाथ खड़ा हो अन्यथा वे रोहन से पूछते ही नहीं थे। अन्य विद्यार्थियों को प्रश्न का सही जवाब न दे पाने पर दंड मिलता था पर कभी रोहन गलत जवाब दे दे तो अध्यापक उसे प्रेम से समझा कर बिठा देते थे। यह बात अन्य सहपाठियों को खलती थी।
एकाध बार एक मेधावी छात्र ने अध्यापक से कहा ‘सर, आप रोहन को उसकी गलतियों पर दंड नहीं देते बल्कि प्रेम से समझा देते हैं परन्तु अन्य किसी विद्यार्थी के गलत बताए जाने पर आप उसे दंड देते हैं, यह भेदभाव क्यों?’ एक बार तो अध्यापक महोदय को इस तरह से पूछे जाने पर क्रोध आया पर वह स्थिति को भांपते हुए चुप रह गये और प्रेम से कहा ‘ऐसा नहीं है, मैं सभी विद्यार्थियों को एकसमान दृष्टि से देखता हूं, तुम्हें ऐसा लगता है, बल्कि यह समझो कि मैं रोहन के साथ साथ अन्य सभी विद्यार्थियों से प्रश्न पूछता हूं ताकि विषय सभी की समझ में आ जाए। तुम्हारा संदेह निराधार है, तुम अपनी सीट पर जाकर बैठ जाओ।’
यह स्थिति ऐसी नहीं थी कि विद्यार्थियों को समझ में न आए। दसवीं कक्षा में आ चुके विद्यार्थियों के शैक्षिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी हो रहा था और वे इन बातों की ओर गौर करने लगे थे। स्कूल में रोहन को लेकर खुसुर पुसुर होने लगती थी। रोहन के कुछ घनिष्ठ मित्र थे जो उसके साथ साये की तरह लगे रहते थे क्योंकि उन मित्रों के माता-पिता जानते थे कि रोहन के पिताजी शिक्षा विभाग में महत्वपूर्ण पद पर हैं अतः उन्होंने अपने बच्चों को चापलूसी का गुण सिखा दिया था। अन्य विद्यार्थी अन्दर ही अन्दर ईष्र्या करते थे पर कुछ कर नहीं सकते थे क्योंकि उनके माता-पिता मध्यम आय वर्ग से थे और इससे अधिक स्वाभिमानी थे। आये दिन रोहन के साथ हो रहे पक्षपात को अब आसानी से देखा जा सकता था।
स्कूल में सांस्कृतिक, कला, खेल, नाटक और न जाने किन किन कलाओं से जुड़ी समितियां थीं जिनमें रोहन मुख्य पद पर आसीन रहता था। यहां तक कि स्कूल की मासिक पत्रिका का भी वह विद्यार्थी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता मुख्य सम्पादक था। आये दिन जब भी स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे जो रोहन के पिताजी मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित होते थे। रोहन को भी विशिष्ट अतिथियों वाली पंक्ति में बैठने की जगह मिलती थी जिसमें वह अपने घनिष्ठ मित्रों को बुला लेता था। दिन-ब-दिन रोहन की साख अपने पिताजी के कारण बढ़ती जा रही थी। अन्य विद्यार्थी मन मसोस कर रह जाते थे पर यही सोच कर संतुष्ट होते कि जब बोर्ड की परीक्षाएं होंगी तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। इसलिए वे बहुत मेहनत करते।
एक दिन क्लास में अंगे्रजी विषय पढ़ाया जा रहा था। अध्यापक महोदय विद्यार्थियों को अखबार में छापे जाने वाले विज्ञापनों का ताना बाना समझा रहे थे। वे अपने साथ अंगे्रजी का एक अखबार भी लाये थे। गुमशुदा की तलाश के विज्ञापन, नौकरी के लिए विज्ञापन देने का तरीका, नाम परिवर्तन संबंधी विज्ञापन देने का तरीका, किसी की मृत्यु हो जाये तो उससे संबंधित विज्ञापन के उदाहरण, उत्पादन संबंधी विज्ञापन, सभी कुछ समझाया जा रहा था। हर छोटे-बड़े विज्ञापन के बारे में, उनसे संबंधित दरों के बारे में बताया जा रहा था। इसके अतिरिक्त अखबार में प्रेस रिलीज़ कैसे दी जाती है उसकी विधि भी बताई जा रही थी। विद्यार्थियों ने अखबार को कभी इस दृष्टि से नहीं देखा था अतः उनमें स्वाभाविक रुचि जाग्रत हो गई थी। जब अध्यापक ने उन्हें बताया कि एक समय में बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम अखबार में घोषित होते थे तो छात्र यह जानकर आश्चर्यचकित रह गये। अब तो डिजिटल दुनिया है। रिजल्ट मोबाइल पर ही देख लिये जाते हैं। मृत्यु संबंधी विज्ञापन दिखाते समय अध्यापक ने बताया कि प्रसिद्ध और धनाढ्य परिवार अपने किसी परिजन की मृत्यु होने पर अखबार में विज्ञापन देकर सूचित करते हैं। पर जब उन्होंने इसकी दरें बताईं तो विद्यार्थियों के मुंह खुले के खुले रह गये। अमीरजादों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, मध्यम आय वर्ग से आने वाले विद्यार्थियों के मन में अनेक विचार उत्पन्न हो रहे थे जिसमें संभवतः यह था कि अगर उनके परिवार में किसी परिजन का महाप्रयाण होता है तो वे कैसे यह सब करेंगे, क्योंकि उनके पास इतना पैसा तो नहीं होगा कि वे अन्य जरूरतों को पूरा करने के अलावा यह भी करें।
सोच गम्भीर थी, विचार झकझोरने वाला था। खैर, अंगे्रज़ी की यह कक्षा अनेक सवाल खड़े कर गई थी। बाकी अध्यायों ने इतना विचलित नहीं किया था जितना आज के अध्याय ने विचलित कर दिया था। समय बीतता गया और बोर्ड की परीक्षाएं आ गईं। अध्यापकों ने हर विद्यार्थी को शुभकामनाएं दीं। रोहन को विशेष तौर पर शुभकामनाएं दी गईं। प्रधानाचार्य महोदय ने अपना मोबाइल नम्बर देकर कहा ‘रोहन किसी बात की आवश्यकता हो, कोई स्पष्टीकरण चाहिए हो तो किसी भी समय निःसंकोच फोन कर सकते हो।’ रोहन खुश हो रहा था। बाकी विद्यार्थी अपने साथ भेदभाव हुआ महसूस कर रहे थे। परीक्षाएं आईं और खत्म हो गईं। परिणाम आये। आशा के मुताबिक रोहन अच्छे नम्बरों से पास हुआ था। कुछ मेधावी छात्रों के भी रोहन के बराबर नम्बर आये थे। अध्यापकों ने रोहन को बुलाकर उसे बधाई दी। प्रधानाचार्य महोदय ने उसे अपने कार्यालय में बुलाकर मिठाई खिलाई। खबर अन्य छात्रों में भी फैल चुकी थी पर वे मजबूर थे।
कुछ ही दिनों में स्कूल का वार्षिक उत्सव था। उत्सव को संबोधित करते हुए प्रधानाचार्य महोदय ने सभी को बधाई दी और रोहन को स्टेज पर बुलाकर उसकी विशेष प्रशंसा की। वे छात्र जिनके रोहन जितने नम्बर आये थे उन्हें स्टेज पर विशेष रूप से नहीं बुलाया गया। वे दुःखी हो रहे थे। इसके बाद पारितोषिक और प्रमाण-पत्र वितरण करने का सिलसिला आरम्भ हुआ। हर बार की तरह रोहन के पिताजी मुख्य अतिथि थे। उनके कर-कमलों से यह सिलसिला शुरू हुआ। हर सांस्कृतिक कार्यक्रम और हर प्रतिस्पर्धा में रोहन को प्रमाण-पत्र मिलने लगे। फोटोग्राफर सक्रिय हो गये। प्रधानाचार्य महोदय ने तो यहां तक कह दिया ‘रोहन बेटे, आप यहीं खड़े रहो, आपके नाम बहुत सी उपलब्धियां हैं।’ यह कहते ही सभागार में सभी अध्यापकों, सहायकों और अन्य कर्मचारियों ने खूब तालियां बजाईं। कुछ विद्यार्थियों ने भी तालियां बजाईं पर अधिकांश विद्यार्थी इस हर्ष में शामिल नहीं हुए। प्रधानाचार्य महोदय और अध्यापकों ने इस तथ्य को नोटिस किया। इसके बाद रोहन के पिताजी को बैठा दिया गया और अन्य विद्यार्थियों को उनके नाम से बुलाकर फटाफट प्रमाण-पत्र दे दिए गए। यह एक औपचारिकता की भांति सम्पन्न हुआ।
समय की चाल को कोई नहीं जान सकता। रोहन के पिताजी का अचानक स्वर्गवास हो गया। अगले दिन जब बच्चे विद्यालय में पहुंचे तो वातावरण गमगीन था। प्रधानाचार्य, अध्यापक, अन्य कर्मचारी गमजदा थे। विद्यार्थियों के अभिभावकों को भी बुलाया हुआ था। कुछ विद्यार्थियों ने देखा स्कूल के मुख्य बोर्ड पर एक अखबार पिन से लगा हुआ था जिसमें पूरे पृष्ठ पर रोहन के पिताजी का चित्र और शोक-संदेश छपा था। ‘इसे छपवाने के तो कम से कम एक लाख रुपये लग गये होंगे’ एक ने कहा। ‘हां भई, ठीक कह रहे हो’ दूसरे ने जवाब दिया। ‘अरे यही नहीं, आज मैंने दूसरे अखबार में भी देखा था उसमें भी छपा हुआ है’ एक और आवाज आई। ‘तो इसका मतलब लाखों रुपये विज्ञापन में खर्च हो गये होंगे’ कुछ आवाजें एक साथ आईं। इतने में प्रधानाचार्य महोदय ने स्टेज पर माइक संभाल लिया था।
शोक-सभा का माहौल था। मुख्य अतिथि के रूप में न होते हुए भी रोहन के पिताजी आज की सभा का मुख्य विषय थे। प्रधानाचार्य महोदय ने शोक-संदेश पढ़ा। कुछ वरिष्ठ अध्यापकों ने भी शोक-संदेश पढ़ा। रोहन और उसकी माताजी स्टेज पर प्रधानाचार्य महोदय के साथ विराजमान थे। इतने में प्रधानाचार्य महोदय ने रोहन की कक्षा के एक मेधावी छात्र को स्टेज पर बुलाकर विद्यार्थियों की ओर से शोक-संदेश बोलने के लिए कहा।
वह विद्यार्थी स्टेज पर गया। उसने स्टेज पर विराजमान रोहन की माताजी और प्रधानाचार्य महोदय और सभी अध्यापकों को प्रणाम किया तथा विद्यार्थियों को संबोधित कर कहा – ‘आज हम सभी दुःखी हैं कि हमारे सहपाठी रोहन के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है। आज आपमें से जिन जिन लोगों ने सुबह के अखबार देखे होंगे उससे भी आप सभी को मालूम हो गया होगा कि रोहन के पिताजी नहीं रहे। कई अखबारों में उनके बारे में शोक-संदेश छपा है। मैं सभी से क्षमा मांगते हुए कहना चाहता हूं कि इस तरह के शोक-संदेश के विज्ञापनों पर लाखों रुपये खर्च हुए होंगे। आज के ये अखबार कल की तिथि में बीते कल के हो जायेंगे। मेरे सहपाठी रोहन के परिजन, कुछ नजदीकी तथा कुछ स्वार्थ रखने वाले इन अखबारों को संभवतः संभाल कर रखेंगे। पर अखबार पढ़ने वाले ऐसे लाखों लोग होंगे जो कुछ दिन में जब अखबारों में रद्दी बेचेंगे तो आज का यह अखबार भी उसमें समा चुका होगा। रोहन के पिताजी के आकस्मिक निधन से हम सभी को दुःख हुआ है। आज हम जिस विद्यालय में पढ़ रहे हैं उसमें अमीर और गरीब विद्यार्थी दोनों ही पढ़ने आते हैं। आप देख सकते हैं कि अनेक विद्यार्थियों के पास नयी यूनिफार्म खरीदने के पैसे भी नहीं होते और जब तक वह यूनिफार्म फट नहीं जाती तब तक पहनते रहते हैं। फीस भी बमुश्किल दे पाते हैं। बाजार से सैकंड हैंड किताबें खरीद कर गुजारा करते हैं। आज पहली बार मेरे जैसे किसी छात्र को इस स्टेज से बोलने का अवसर मिला है तो मैं सभी से निवेदन करना चाहूंगा कि यदि ऐसे दुःख के अवसर पर इस तरह के विज्ञापनों पर खर्च करने के साथ-साथ यदि धनाढ्य परिवारों द्वारा अपनी सामथ्र्य अनुसार निश्चित राशि योजनाबद्ध रूप से जरूरतमंदों की कुछ आवश्यकताओं को पूरा करने में दी जाये तो दिवंगत आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मैं अपनी बात से किसी को आहत नहीं करना चाहता हूं पर एक सोच देकर जाना चाहता हूं। मेरी किसी भी त्रुटि के लिए मुझे क्षमा करें।’ इतना कहकर वह छात्र स्टेज से उतर गया।
प्रधानाचार्य, अन्य अध्यापकों, रोहन व उसके मित्रों तथा अन्य सहपाठियों व अभिभावकों के चेहरे पर भिन्न भिन्न प्रतिक्रियाएं आ जा रही थीं। इससे पूर्व कि प्रधानाचार्य महोदय माइक संभालते, रोहन की मां जो स्टेज पर ही विराजमान थीं, उठीं और धीरे-धीरे माइक पर आईं ‘… मैं इस विद्यार्थी की प्रशंसा करना चाहती हूं जिसने मुझे और संभवतः आप सभी को एक नई सोच, नई दिशा दी है। मेरे विचार में इस विद्यालय में ऐसे गुणी और मेधावी छात्र बहुत होंगे। मेरा प्रधानाचार्य महोदय से निवेदन है कि ऐसी प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें निष्पक्ष रूप से आगे लाएं। हमारी वर्तमान पीढ़ी हमारे देश का भविष्य है। मैंने इस दिशा में एक निर्णय ले लिया है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को स्कूल की यूनिफार्म, नई पुस्तकें देने का फैसला करती हूं जिनके माता-पिता कड़ी मेहनत करने के बाद दो जून की रोटी कमा पाते हैं….’ बात पूरा होने से पहले ही सभागार में उपस्थित सभी सम्मान में उठ खड़े हुए। ‘आप सब कृपया बैठ जाइए … अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है … जो मेधावी छात्र आगे पढ़ना चाहते हैं लेकिन आर्थिक समस्या के चलते ऐसा नहीं कर पायेंगे तो मैं उन्हें यह बताना चाहती हूं कि जब तक वे पढ़ना चाहें वे पढ़ें, उनकी पढ़ाई संबंधी सारा खर्च हमारा परिवार वहन करेगा। प्रधानाचार्य महोदय से मेरा निवेदन है कि ऐसे छात्रों की सूची मुझे उपलब्ध करा दें। साथ ही मेरा सभी अध्यापकों से निवेदन है कि वे सभी छात्रों को समान अवसर दें जिससे ये नई उम्र की नई फसल देश का नाम रोशन कर सके।’ इतना कहकर वह बैठ गईं। प्रधानाचार्य महोदय और अन्य अध्यापकगण सिर झुकाए बैठे थे। सभागार में ऐसी अनेक आंखें थीं जो उस मेधावी छात्र के प्रति अपना आभार प्रदर्शित कर रही थीं जिसने एक नई दिशा का मार्ग प्रशस्त किया था। नवयुग की नई उम्र की नई फसल का निःसंदेह एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण था वह मेधावी छात्र।