नंद के द्वार अलख जगायौ
नंद के द्वार अलख जगायौ भोला ने बम,
बालकृष्ण के दर्शन को कैलास से आये हम।
सुनत टेर भोले की मैया द्वारे पै आयी,
बावा के दर्शन करवायवे लाला को लायी।
अरे ओ औघड़ अवधूत अपनी धूनी की भभूत,
मेरे लाल के नेंक भाल पै लगाय दै।
व्यापै नहि कोई ब्याधि रहें दूर जासौं उपाधि ,
दै असीस शीश मोरछल हू छुआय दै।
लखि बालरूप कृष्ण कौ गौरी पति पुलकित भये,
कर महादेव के दर्शन श्याम हू किलकाये हैं।
मिलते ही दृष्टि, थिर भईं अँखियाँ लाल की,
देखते रहे अनिमेष, नहि पलक झपकाये हैं।
देख सुत बेहाल और शम्भु के कंठ ब्याल,
मैया ने लाल निज अंक में छिपायौ है।
लखि बावा कौ विकट भेष चकि रह्यौ निर्निमेष ,
एकटक देख रह्यौ पलक नहि गिरायौ है।
वैरगना ने कछु कर दियौ टौना लाल पै,
या जाकौ कराल रूप देख कें डरायौ है।
लखि चिंता मैया की बोले भोले बम-बम,
सुनि विहँसे नँदलाल, मात सुख पायौ है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।