धड़कन ••
क्या सुना है तुमने कभी… उन धड़कनों को,
जो मेहनत और पसीने के दम पर धड़कतीं हैं,
वो धड़कनें जो जब चलतीं हैं तो..
समाज सारा ज़िंदा रहता है,
फावड़े और कुदाल की हर एक मार पर,
हथौड़े से पिटते लोहे की चोट पर,
वो धड़कन हर जगह सुनाई दे जाती है..
गर सुनोगे उसे गौर कर…
पैसों की खन खन से,
अय्याशी के जीवन से,
वो धड़कनें नहीं मिलती कभी,
जो जिंदादिली का एहसास करा जातीं हैं,
मेहनत कश मजदूर सब जानता है,
खुश रहना.. धड़कनें बुनना..
कभी पहन के देखना उसकी बुनी धड़कनें,
दर्द भी खुशियों से लिपटे पाओगे…
◆◆©ऋषि सिंह “गूंज”