‘ध्रुबतारा ‘
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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समस्त लेखक ,कवि आ साहित्यकार कें हमर नमन जिनक रचनाक प्रस्तुति ह्रदय कें मोहि लेत छथि !
रहि-रहि ओहि कृति मानस पटल पर घुरियाइत रहित अछि ! विषयक चयन …..,अभिव्यक्ति ,……भाषा ,…..सरलता ,……माधुर्यता ,………सकारात्मक सोच……
आ….. निष्कर्ष लेखनिक ‘सप्त ऋषि ‘ थीक ! हमरा लोकनिकें ‘ध्रुबतारा ‘ बनि साहित्य- क्षितिज मे चमकैत रहक चाही !
कखनो -कखनो हम सब ‘ सत्यम शिवम् सुन्दरम ‘ क मौलिक मंत्र बिसरि जाइत छी ! जनमानस लग्ग पहुँचबाक लेल रामचरित मानस रचयिता … ‘तुलसी दास’ ….बनक प्रयास हेबाक चाही ! विद्वता . दर्शन आ जटिलताक प्रयोगक लेल …..’विनय पत्रिका “….क रचना हेबाक चाही !
हमरा
सदेव इ अभिलाषा रहित अछि जे हमर अभिव्यक्ति समस्त मित्र लग पहुँचय ! यथार्ततः ….किनको लग समयक आभाव छनि मुदा उपरोक्त मंत्र कें अपन अस्त्र बनने रहब त युगयुगान्तर धरि …’ध्रुबतारा ‘… समान साहित्य क्षितिज मे चमकैत रहब!
हमर शुभकामना
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका