धोखा
अपने ही अतरंगी अदाएं में,
इतने मसरुफ़ थे हम,
कि पता ही ना चला ,
कब किसने धोखा दे दिया हमें।
जिस के लिए में रोज़,
मांगती थी मन्नतें,
वह कभी मेरा हो ही ना सका,
अपने ख्यालों से ख्वाबों को सजाने में,
शायद हकीकत ही भुल गए हम।
मदं मदं मुस्करा कर कोई,
लपेट अपने चुपड़ी चुपड़ी बातों में,
खुशीयों का सेज सजा कर,
कोई दगा दे गया हमें।