शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत
मंजिलों की तलाश में, रास्ते तक खो जाते हैं,
क्या चरित्र क्या चेहरा देखें क्या बतलाएं चाल?
मैं पत्थर की मूरत में भगवान देखता हूँ ।
शब्द सुनता हूं मगर मन को कोई भाता नहीं है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
बधाई हो बधाई, नये साल की बधाई
गुज़र गये वो लम्हे जो तुझे याद किया करते थे।
अब तो ख़िलाफ़े ज़ुल्म ज़ुबाँ खोलिये मियाँ
गुजरते लम्हों से कुछ पल तुम्हारे लिए चुरा लिए हमने,
*नमन गुरुवर की छाया (कुंडलिया)*
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*.....उन्मुक्त जीवन......