धैर्य
क्यों करना है जान गए तो, क्या करना आ जाएगा।
मंजिल भी तब साफ दिखेगी, चलना भी आ जाएगा।।
राह तुम्हे खुद दिखलाएगी, कांटे कंकड़ पत्थर फूल।
अंधियारे पथ पर तुमको, साफ दिखेंगे कर्कश शूल।।
यहीं परीक्षा धैर्य की होगी, जब जीवटता दम तोड़ेगी।
लंबी लंबी भारी सांसे तेरी, धीरे धीरे तेरा प्रण तोड़ेगी।।
तुम्हें लगेगा मृत्यु का क्षण है, मगर यही जीवन का रण है।
नहीं किया यदि आत्मसमर्पण, तो ये क्षण जीवन क्षण है।।
धैर्य है जननी पुरुषार्थ की, सफल मनुज की कुंजी है।
बाह्य नहीं कोई वस्तु ये कोई, अंतर्मन की पूंजी है।।
अंतर्मन को जीत लिए फिर, बाहर कौन हराने वाला।
कान्हा कृष्णा कहता ये सब, जो था गाय चराने वाला।।
कहने की ये बात नहीं, कि तुम नारायण की इच्छा हो।
जीतोगे हर बाजी “संजय”, फिर कितनी बड़ी परीक्षा हो।।
“नर से नारायण की यात्रा में डर काहे का”