धैर्य धारण करना होगा …
आसमान उगल रहा आग ।
हम कहाँ जाए अब भाग ।।
जल रहे है हमारे पाँव ।
दिखती नही कोई छाँव ।।
स्वार्थ के आगे सब बेबस ।
बचा नहीं अब प्रेम रस ।।
स्नेह के लिए सब तरसते ।
सिमटते जा रहे सारे रिश्ते ।।
अभी भी समय शेष है ।
बचा ले होने से पहले अवशेष ।।
अपना सुख सब चाहते ।
जितना सुख चाहे उतने दुःख आते ।।
यहाँ कोई नही है सन्तुष्ट ।
जग बनता जा रहा असंतुष्ट ।।
टूट रहे है जग के विश्वास ।
किससे लगाए अब आस ।।
कम हो रही है साँसे ।
रोज शकुनि खेले पांसे ।।
घुट घुट कर पी रहे गरल ।
कैसे होगा जीवन सरल ।।
धैर्य धारण करना होगा ।
मन में संयम लाना होगा ।।
आत्म विश्वास जगाना होगा ।
थोड़ा श्रम अब करना होगा ।।