धेनु बिन अहीर
धेनु बिन अहीर
*************
याद है,
वो भोली सी सूरत,
वो मासूमियत,
मंद-मंद मधुर मुस्कान,
झुकी-झुकी निगाहें,
खुली-खुली सी बाहें,
दिल में दबी हुई आहें,
अंगड़ाई लेता मूर्छित शरीर,
जिसे देख चंचल मन हो अधीर,
हम तो थे लकीर के फकीर,
पर मन में उठती पीर,
उलझी-उलझी जुल्फें जैसे जंजीर,
रांझे को बांधती थी जैसे हीर,
आया एक हवा का झोंका,
उड़ाकर ले गया संग सुनहरी मौका,
डूब गई प्रेम की बहती नौका,
उदासीन हो कर घर लौटा,
मनसीरत मन मे बसी है तस्वीर,
पर हूँ अकेला जैसे धेनु बिन अहीर।
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)