धृतराष्ट्र का पुत्र मोह!
हस्तिनापुर के महाराज,
इनका नाम है धृतराष्ट्र!
नेत्रहीनता से संतप्त,
अपनी कुंठा में अभिशप्त!
राज सिंहासन चाहते अपने अनुकूल,
पुत्र मोह में रहते व्याकूल!
भीष्म,इनके पिता समान,
तात कह कर करते सम्मान!
भीष्म हैं शातनु के वारिश,
शांतनु से किए वचन में बंधे हुए हैं!
हस्तिनापुर की रक्षा से जुड़े हुए हैं!
पर रहते हैं कुछ भ्रमित होकर,
हस्तिनापुर की बजाए राज सिंहासन.के प्रति समर्पित रह कर!
धृतराष्ट्र के एक अनुज विदूर हैं,
राजनीति में यह धुरधंर है!
सच कहने से कभी नहीं रुकते,
नहीं किसी के आगे सच कहने चूकते !
धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ,राजमाता है,
पति धर्म से इनका नाता है,
पति जन्माधं है,जब से जाना,
पति समान नेत्र विहीन रहना इन्होंने ठाना !
पट्टी बाँध कर आँखें बंद कर डाली,
पति को कौन सही राह दिखाने वाली,
इस पर इन्होंने नज़र नहीं डाली!
इनका ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन है,
दुर्योधन के निन्यानमें और भाई है!
मामा शकुनि साथ में रहते हैं,
दुर्योधन को अधिक प्रेम करते हैं!
उनकी मन में यह रहता है,
दुर्योधन युवराज बने ,यह उनकी हठता है!
किन्तु घृतराषट् के अनुज पुत्र,जेष्ठ हैं सब भाईयों से,
और महामंत्री ऐसा ही चाहते हैं,
ज्येष्ठ पुत्र ही युवराज बने ,वह अपनी राय बताते हैं!
बस यही बात धृतराष्ट्र को नहीं भाती,
और शकुनि सहित उनके अनुजों नहीं सुहाती!
इस लिए करने लगे हैं षड्यंत्र,
अनुज पुत्रों को नहीं मिले राज तंत्र!
शकुनि व दुर्योधन ने तो जान से मारने की योजना बनाई थी,
किन्तु विदुर की चालाकी से वह काम ना आई थी!
किन्तु युवराज पद तो पा लिया था,
और अब छोडने से इंकार किया था!
थकहार कर राज्य का विभाजन तक कर डाला,
और खंडहर राज अनुज पुत्रों को दे डाला!
अनुज पुत्र सधर्मी है,
उन्होंने ये स्वीकार कर लिया,
और खंडहर को हरियाली में तब्दील कर दिया!
नाम रखा गया इन्द्र प्रस्थ ,
देख-देख कर आँखें हो गई मस्त !
अब दुर्योधन की नजर इस पर लग गई,
इसे पाने की हसरत बढ गई !
अब छल कपट करने की सोची,
ध्युत क्रिडा के आमंत्रण पर बुलाया,
और जो ध्येय बनाया था उसको पाया!
अनुज पुत्रों के साथ छल होता रहा,
और अंधा धृतराष्ट्र अनदेखी करता रहा!
उसने तो तब भी नहीं टोका,
अनुज पुत्रों की बधू की लाज पर जब बन आई थी,
और तब भी न्याय नहीं कर पाया,
अनुज पुत्रों को बनवास व अज्ञात वास का आदेश सुनाया!
जब उन्होंने यह शर्त भी पुरी कर डाली ,
तब अपने राज की वापसी की माँग कर डाली ।
लेकिन अपने पुत्र मोह में आकर,
उसने. यह प्रस्ताव भी ठुकराया ,
और अब जब श्री कृष्ण शांति प्रस्ताव को लाए,
तो दुर्योधन को यह भी नहीं भाऐ।
कहने लगा,इन्द्र प्रस्थ क्या,और क्या पाँच गाँव,
मैं तो सुई की नोक के बराबर भी नहीं दे पाऊँ!
और इस प्रकार युद्ध में जाना स्वीकार किया,
किन्तु धृतराष्ट्र नेअनुज पुत्रों पर नहीं कोई उपकार किया!
बस पुत्र मोह में ही उलझा हुआ रहा,
और इसी मोह में पुत्रों से भी वंचित रह गया!
सौ पुत्रों के पिता के कोई पुत्र नहीं बच पाया,
और इस प्रकार अपने विकारो से भरे मन में ,
कोई शुभ कार्य भी नहीं कर पाया!
पुत्र मोह की यह दास्तान एक मिशाल है।
फिर भी हम सब पर पुत्र मोह का माया जाल है!
पुत्र मोह में आज भी लोग लगे हुए हैं,
कुछ में कम है, कुछ में ज्यादा,
यह हम अपने नेताओं के घरों में तो देख रहे हैं!
हर किसी का आज यही हाल है!
धृतराष्ट्र इसकी जीति जागती मिशाल है !।