धूल से शृंगार कर लो
आज पैसों के बिना ही प्रीत का व्यापार कर लो,
शबनमीं इन तितलियों को फूल से अंगार कर लो ।
रौंद डालीं जो तुम्हीं ने पग तले कर धूल डालीं,
वक़्त कहता धूल बनकर धूल से शृंगार कर लो ।
युग बदलते शत्रुओं का आज तुम संहार कर लो ।
वीरता को आज रण में निज गले का हार कर लो ।
देश की पावन धरा पर नेह का दीपक जलाकर ।
शूर का अवतार धर लो धूल से शृंगार कर लो ।