धूप
रँग बदलती हुई मौसमी धूप है
चुभ रही है कहीं भा रही धूप है
रूपसी है धरा जगमगाता गगन
भोर की खिल रही मखमली धूप है
थी सुनहरी चमक पीली पड़ने लगी
सांझ होने लगी, थक गई धूप है
बैर इसका बड़ा बादलों से रहा
ऐंठती ही रहे नकचढ़ी धूप है
तेज होकर जलाती यही ‘अर्चना’
सेकती पर बदन गुनगुनी धूप है
24-11-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद