*धूप शीत में खिली सुनहरी, अच्छी लगती है (हिंदी गजल/ गीतिका)*
धूप शीत में खिली सुनहरी, अच्छी लगती है (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
धूप शीत में खिली सुनहरी, अच्छी लगती है
नारी बनी देश की प्रहरी, अच्छी लगती है
2
यत्न किया यदि तो सागर, तुम ही पार करोगे
फिर बोलोगे नदिया गहरी, अच्छी लगती है
3
आम चलन है कपटीपन का, इसीलिए तो अब
कहीं मिली निश्छल स्वर-लहरी, अच्छी लगती है
4
खिन्न हो चुका मन कर्कशता सुन-सुनकर ऐसा
कानों की हालत अब बहरी, अच्छी लगती है
5
जहॉं अशिक्षा का अंधेरा, सदियों से फैला
ध्वजा ज्ञान की उस पर फहरी, अच्छी लगती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 6151 51