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16 Feb 2022 · 1 min read

धूप में रक्त मेरा

अतुकांत कविता

धूप में रक्त मेरा

हर किरण के संग कदा
यह रक्त भी तपा होगा
बहा होगा पसीना फिर
सूरज तब खिला होगा।

जाने कितने पलों को
मैंने,मिट्टी में गूँधा होगा
इतिहासों को कितने जी
मैंने ख़ुद ही रचा होगा।।

हर भट्टी में लावा पिघला
हर मुट्ठी से आवा निकला
ले छैनी औ’ हथौड़ा संग
सीना मेरा लोहा जकड़ा

कितने लम्हे आज़ाद किये
कितने सदमे सुकरात किये
जब हाथ बढ़ाया डाली पर
क़द अपना खुद मचान किये।

तुम न जानो पल की कीमत
तुम न जानो कल की ज़ीनत
भर-भर अंजुरी मैं रोया हूँ
तब जाकर,शब्द जिया हूँ।।

बहियाँ मेरी, कहती बतियाँ
आ-जा आ-जा मेरी बिटिया
रूप रंग सागर यह सपना
कहाँ बिछोना, रहा खिलौना।।

शब्द लिखे, काटे फिर मैंने
गीत लिखे, साधे फिर मैंने
क़तरा-क़तरा मैं जीया हूँ
साँसों को थामे मैं खड़ा हूँ।।

सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
1 Like · 171 Views
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