घर नही है गांव में
धूप में जले पांव
मांगते हैं छांव
जाना चाहते हैं गांव
पर दर नही है गांव में
जमी नहीं है गांव में
कमी नहीं है कोई भी
बस घर नही है गांव में..
पास ही है गांव तो
एक नही है तो दो
चाहने वाले है सब
जानने वाले है सब
है सभी कुछ किंतु बंधु
बसर नही है गांव में
डगर तो बहुत सी है
बस घर नहीं है गांव में
पांव जम पाते नही
रिश्तों के घर
किश्तों के घर
आकर बाहर
ढूंढते है ,अपना घर
अपना घर
अपने खेत
कोई नही है गांव में
मंजिले तो खूब हैं
सफर नहीं है गांव में
कसर नही है कोई भी
बस घर नही है गांव में
✍️ प्रिया मैथिल