धूप छांव
धूप छांव
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जैसे जिंदगी एक रेल है
वैसे ही धूप छांव का खेल है
दोनों ही चलते रहते हैं
अपनी अपनी चाल से
आगे बढ़ते रहते हैं।
दोनों में चोली दामन सा रिश्ता है
दोनों के बिना चलता नहीं काम है।
एक दूजे के बिना दोनों अधूरे हैं
एकदम नीरस, बेरंग, बेजान हैं
जैसे जीवन का सांसों से नाता है
धूप छांव का भी एक दूजे से वैसा ही रिश्ता है।
ठीक वैसे ही जिंदगी और धूप छांव में भी
अलिखित अनुबंध है
जिनका सदियों से संबंध है
और अनंत काल तक रहेगा,
कोशिश करने पर भी
न कोई तोड़ सकता है
न ही कभी तोड़ सकेगा,
क्योंकि दोनों का संबंध अटूट है
निज स्वार्थ से न इनका संबंध है
चाहे धूप और छांव में हो
या धूप छांव का जिंदगी से हो।
ये चलता ही आ रहा है
और चलता ही रहेगा।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश