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8 Feb 2024 · 1 min read

“धूप-छाँव” ग़ज़ल

ख़याल इक, जो युगों से, मुझे सताता है।
सिवाय उसके क्यूँ, कुछ भी न मुझे भाता है।

गर्मजोशी की जहाँ में नहीं कमी, फिर भी,
सर्द रातों मेँ, उसका ध्यान, मुझे आता है।

जाँ ये हाज़िर है, सलामत उसे ख़ुदा रक्खे,
भले ही रीत, वो बिलकुल नहीं निभाता है।

कैसे कह दूँ कि मुझे प्रीत नहीं है उससे,
उसी की याद मेँ तो, दिल ये, सुकूँ पाता है।

रास आता है, तग़ाफ़ुल भले ही, ज़ालिम को,
गीत पर दिल, न जाने क्यूँ, उसी के गाता है।

छाँव देने मेँ, वृक्ष अग्रणी हैं, मान लिया,
उसकी ज़ुल्फ़ों का पर,झुरमुट तो,गज़ब ढाता है।

कोई तस्वीर, मकम्मल भी हो कैसे “आशा”,
धूप के सँग-सँग, साया भी, चला जाता है..!

सलामत # कुशलपूर्वक, safe, in good health
तग़ाफ़ुल # उपेक्षा करना, to neglect
मकम्मल # पूर्ण, complete

##————##————##————##

Language: Hindi
5 Likes · 5 Comments · 212 Views
Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
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