धुआँ उठा नहीं,मैं आग लगाऊं किस तरह –आर के रस्तोगी
धुआँ उठा नहीं,मैं आग लगाऊ किस तरह
प्यार हुआ नहीं,उन्हें गले लगाऊ किस तरह
आवाज़ दी है उसने,मुझे हमेशा बार बार
जुबान मेरी बंद है,उन्हें बुलाऊ किस तरह
तारे गिनते गिनते,आँखे थक चुकी है मेरी
आँखों में नींद नहीं है,उन्हें सुलाऊ किस तरह
रो इतना मैं चुकी है,उनके चले जाने के बाद
आँखों मै आँसू नहीं है,उन्हें रुलाऊ किस तरह
जाम सब खत्म हो चुके है,मैफिल भी उठ चुकी
आँखों आँखों मै डाल कर,उन्हें पिलाऊ किस तरह
दिल में गहरे जख्म भरे हैं,रस्तोगी के इस तरह
कोई तो बतायें, उन्हें दिलासा दिलाऊ किस तरह
आर के रस्तोगी