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20 May 2023 · 1 min read

धुँधलाती इक साँझ को, उड़ा परिन्दा ,हाय !

धुँधलाती इक साँझ को, उड़ा परिन्दा ,हाय !
श्रृंगार धरा रह गया ,निश्चेष्ट पड़ी काय ।।

@पाखी

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