धुँए का बादल
!!धुँए का बादल!!
हम
तमाम उम्र
इंतज़ार करते रहे
बारिश का,
वो
छाया था
उमड़ा था घुमड़ा था
हवा के झोंको सँग
लहराया था
दिल की दुनिया पर
बरबस छाया था,
मन तो नादान था
समझा न
हकीकत उसकी,
झूम के छाना
डराना
थी यही आदत उसकी,
वो तो भरता रहा
सांसों में
घुटन और थकन,
उसको उड़ना था
उड़ा.. दूर बहुत
जा निकला
वो तो आवारा था
पास ठहरता कैसे…
वो तो
धुएँ का बादल था
बरसता कैसे।
मंजूषा मन