धुँआ-धुँआ
धुआं -धुआं ,है शहर में, हवा नहीं है
मैं जो बीमार हूं ,मेरी दवा नहीं है
तलाश उस शख्स की, है अभी जारी
जिसके पांव , छाले -छाले जो थका नहीं है
कहां तक लादकर, हम बोझ को चले
बनके श्रवण, मां-बाप को पूजा नहीं है
दंगो के शहर, दहशत लिए जीता हूं मैं
कोई हादसा करीब से, छुआ नहीं है
लहरो से मिटी रेतों की इबारत
सीने लिखा नाम तो ,मिटा नहीं है
सुशील यादव दुर्ग छत्तीसगढ़