धीर धरो प्रभु विचलित मन में
धीर धरो प्रभु विचलित मन में
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धीर धरो प्रभु विचलित मन में,
आग लगी चितवन तन-मन में।
माया ठगनी है ठगती जाए,
कोई नहीं मेरी पेश आए,
ध्यान हटे न एक पल धन में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
पैसा तो जग में बहुत कमाया,
जीवन का है सुख-चैन गवाया,
लोभ समाया है कण-कण में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
वक्त का घोड़ा भागता जाए,
दौड़ में पीछे छोड़ता जाए,
चेतना सोई है तन-बदन में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
जीवन मे छाया है अंधेरा,
जगत में नहीं कुछ तेरा – मेरा,
सेंध लगी है निश्चित प्रण में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
रिश्ते – नाते गहरे भंवर है,
सभी के कंठ मे भरा जहर है,
अब जाएं कौन से वतन में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
प्रीत पराई नहीं हाथ में आई,
जन-जन में है देखी रुसवाई,
चित नही लगता है भजन में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
मनसीरत मंझदार फंसा है,
बीच अंदर तक खूब धंसा है,
भाग कैसे इस जीवन रण में,
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
धीर धरो प्रभु विचलित मन में।
आग लगी चितवन तन-मन में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)