धीरे-धीरे कदम बढ़ा
नयी डगर पर चलना है,निश्चित बाधा तो आएगी।
नया सफर और नई डगर, थोड़ा तो तुम्हें सताएगी।
नई जगह पर रहना हो तो,विचलित ना हो जाना तुम।
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धीरे-धीरे कदम बड़ा,मंजिल को अपनी पाना तुम।।
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कुछ ठोकर बाधायें बन, मंजिल का रास्ता रोकेगी।
तुझको हरदम गिरा गिरा, मंजिल से दूर भी फेंकेंगी।
पांव थकेंगे बेशक तेरे, मन का विश्वास न खोना तुम।
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धीरे-धीरे कदम बढ़ा,मंजिल को अपनी पाना तुम।
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नदिया की धारा को देखो, हरदम बहती रहती है।
क्या कभी तुमने ऐसा देखा, किसी तट पर वह ठहरती है। उसका लक्ष्य है सागर बनना ऐसे ही लक्ष्य बनाना तुम।
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धीरे-धीरे कदम बढ़ा, मंजिल को अपनी पाना तुम।
। ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️ करुणा