धीरे धीरे उन यादों को,
धीरे धीरे उन यादों को,
अब हम भुलाने लगे हैं,
नयी तस्वीर कलम से,
हम अब बनाने लगे हैं…
जख्म नासूर बन के,
जो बहुत रिसने लगे थे,
उन पर अल्फाजों का,
नया मरहम लगाने लगे हैं…
उन्हे याद करते करते,
बहुत बही हैं ये आँखे,
अपने अश्कों को हम,
रोशनाई बनाने लगे हैं….
बहुत रौंदे गए अरमान,
जब भी कहे दिल से,
उन हसरतों को अब हम,
लिखावट में लाने लगे हैं…
©विवेक’वारिद’*
(रोशनाई- स्याही)