धिक्कार
जो सबकों सुख देते हैं
जिनका बोया हम खाते हैं।
धिक्कार है ऐसे समाज को,
उनके बच्चे भूखे रह जाते हैं।
अरे.! व्यापार वालों जरा
गरीबों की भी सुनों हाहाकार।
पड़ोसी भूख से मर रहा है
तुम्हारे भोजन को धिक्कार।
हे.! प्रभु, अगर दीन जन
यूंही भूख से प्राण गवायेंगे।
धनवानों की दुनियां होगी
गरीब कहीं खो जायेंगे।
©® डॉ. मुल्ला आदम अली
तिरुपति – आंध्र प्रदेश