!! धिक्कार है मर्द होने पर तेरे !!
मर्द होने पर तू नाज करता है
नामर्दगी के बहुत काम करता है
हाथ उठाता है तू अबला पर
कितना घिनोना तू काम करता है !!
औरत को बनाया है लक्ष्मी रूप में
तू उस का गलत इस्तेमाल करता है
मारता है , बहुत वार करता है
कैसे बेदर्दी तू यह काम करता है !!
बंधन जब बाँधा था तो अब सब भूल गया
उस के देह पर इतने अत्याचार करता है
मारता है दिन रात अनगिनत वार से
फिर बिस्तर पर अपनी हवस का शिकार करता है !!
तू अभी नहीं समझ पायेगा मानव
तू अंधे बन के सारे काम करता है
इक दिन जहान से चली जाएगी वो ऐसे
जैसे तू उसका इतना तिरस्कार करता है !!
धन के लिए मारता है, लालच के लिए मारता है
अपनी वासना की आग बुझाने को मारता है
कभी एहसास नहीं होता है तुझ को मन में
कैसा मर्द बन के तू उस पर अत्याचार करता है !!
जब तक तेरी मान ले तो दिखावे का प्यार करता है
जरा सा उस ने अपनी ख़ुशी के लिए किया तो वार करता है
कितने जख्म देकर उस के तन पर तू आराम करता है
एक जख्म खुद लेकर तो देख , कितना अपने तन से प्यार करता है !!
मेरी कविता शायद झकझोर रही होगी तेरे दिल को
न जाने कैसे कैसे लिख रहा मैं संभाल अपने दिल को
मर्दानगी अगर है दिल के अंदर तो रब से डर ले
आज वो जिन्दा है तेरे लिए ,खुद से ज्यादा उस से प्यार कर ले !!
मत हाथ उठा, न कत्ल कर उस का दिल
जीवन इक बार मिला है, इस का सम्मान करता चल
प्रेम से बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं है ओ नादान मर्द
मत दे ताने, मत मार उसको, न दे अब कभी इतना दर्द !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ