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29 Aug 2020 · 2 min read

धार्मिक निष्ठा और कट्टरता

धार्मिक निष्ठा और कट्टरता
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यह हमारे लिए यह शर्म की बात है कि धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का तमगा लिए हमारे देश भारत में अब धार्मिक निष्ठा और कट्टरता जैसे भाव चारों ओर फिजाओं में तैरने लगे हैं।
अपने धर्म के प्रति निष्ठा कोई असामान्य बात नहीं है ।सभी को अपने धर्म के प्रति निष्ठावान होने की आजादी है और होना भी चाहिए।हम अपने धर्म के लिहाज से पहले से चली आ रही परम्पराओं का निर्वाह करें।पूजा पद्धतियों का अनुपालन स्वतंत्र रूप से करें।न कि किसी दबाव या किसी के दबाव में आकर।
लेकिन धार्मिक निष्ठा को जब जबरन थोपने, अपने धर्म/आराध्य को श्रेष्ठ बताने, मनवाने की जिद पर उतर आने,दूसरे धर्म को नीचा दिखाने, धर्म स्थलों को /लोगों को क्षति पहुँचाने की कोशिश /जिद धार्मिक कट्टरता है।
श्रेष्ठ होने के दंभ के दुष्प्रभाव भी आये दिन देखने को मिल रहे हैं।
रामजन्म भूमि प्रकरण इसका सबसे बढ़ियां उदाहरण है।दोनों पक्षों के कुछ लोगों ने माहौल को बिगाड़ने का ही प्रयास किया।आज भी कुछ लोग निहित स्वार्थवश अनर्गल बयान देकर धार्मिक कट्टरवाद की आग भड़काने का ही षड्यंत्र करते रहते हैं।
धार्मिक निष्ठा जरूरी हो सकती है,परंतु धार्मिक कट्टरता कभी नहीं।आप खुद विचार कीजिये की धार्मिक कट्टरता की भेंट कुछ लोग ही नहीं चढ़ते ,बल्कि पूरा देश,समाज और सम्पत्तियों संस्कृति ,और सामाजिक ताने बाने को भी इसकी आग में झुलसना पड़ता है।
अच्छा होगा कि सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की धार्मिक निष्ठा को ठेस पहुँचाये बिना किसी भी व्यक्ति,
वयक्तियों, समूहों, संगठनो की धार्मिक कट्टरता का एकजुटता के साथ विरोध करें।अन्यथा धार्मिक कट्टरता का जहर फैलकर हमारे लोग, समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ने से यूँ ही रोकता रहेगा और हम/हमारा धर्म/हमारा समाज यूँ ही दो कदम एक कदम पीछे वाली स्थिति से उबर नहीं सकता।जो न केवल समाज बल्कि राष्ट्र के लिए भी नासूर बनता ही रहेगा।
?सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 2 Comments · 669 Views
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