धार्मिक नहीं इंसान बनों
वर्तमान में हमारे देश की जो हालत है वो किसी से छुपी नहीं, कैसी विडम्बना है कि आज़ादी के उपरांत हम अलग-अलग धर्मों में विभक्त हो गये जबकि अंग्रेजों की गुलामी में हम सिर्फ भारतीय थे, कितनी कुर्बानियों के उपरांत हमने आज़ादी हासिल की लेकिन नतीजा क्या निकला हम हिन्दुस्तानी के बजाये हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई बन गये, इसमें कोई दो राय नहीं है कि गंदी राजनीति ने आज हमारे देश को हर तरह से बरबाद कर दिया है लेकिन उन्हें उनके गंदी राजनीति के मकसद को कामयाब करने में क्या हम दोषी नहीं ? क्या हमारे सोचने समझने का दायरा इतना छोटा है कि हम सही गलत में भी अंतर नहीं कर पाते, हमारी मानवीय संवेदना भी धर्म देख कर आहत होती है तो क्या कहेंगे इसे इंसान जिसका मतलब ही इंसानियत है और अगर यही न हो तो फिर वो इंसान कहलाने के योग्य नहीं रहता और धार्मिक इंसान अपने अंदर पाये जाने वाले दया, क्षमा, करुणा आदि जैसे भावों के होने के कारण होता है जिनमें यही भाव न हो तो वो इंसान क्या और धार्मिक क्या झूठ, छल कपट, निकृष्टता ये इंसान होने की निशानियां नहीं होती, जब हमारी प्रकृति कोई भेदभाव नहीं करती तो हम कौन होते हैं भेदभाव करने वाले ? सब एक ही हवा में सांस लेते हैं वो क्या हम यो हवा बांट सकते हैं? अगर हमारा स्व भी हम इंसानों की तरह भेदभाव करने लगे तो क्या हम अपना अस्तित्व बचा सकते हैं? फिलहाल तो हम जीव जन्तुओं पशु पक्षियों से भी निम्न हो गये हैं जबकि हम इंसान जो कि अपने रब की सर्वश्रेष्ठ कृति है, शुक्र है इन पशु-पक्षियों के धर्म नहीं होते, गंभीरता से सोचने वाली बात है कि हम दुनिया में हमेशा के लिए रहने तो नहीं आये और कितना बड़ा सच है कि किसी को भी अपने आने वाले पल की खबर नहीं कि वो अभी जिन्दा है थोड़ी देर में ज़िन्दा होगा भी या नहीं, हम इतिहास भी उठा कर नहीं देखते तो समझ आ जाये कि कुछ भी स्थाई नहीं, इस कड़वी हकीक़त के उपरांत भी इंसान समझता नहीं है हम आपस में लड़ रहे हैं मर रहे हैं मार रहे हैं एक दूसरों की मौत पर खुश हो रहे हैं जश्न मना रहे हैं सच कहूँ तो यहाँ हम इंसान -इंसान नहीं रहते हम से बेहतर तो जानवर हैं जो लड़ते हैं तो अपने अस्तित्व के लिए और हम इंसान लड़ रहे हैं अपनी गंदी मानसिकता की संतुष्टि के लिए यहां धर्म को जोड़ना गलत होगा क्योंकि धर्म सिर्फ अच्छाई का प्रतीक होता न कि बुराई का नागरिकता कानून जिस नियत से बनाया गया है उसको बनाने वाले भी अच्छी तरह जानते हैं और मानसिक रूप से शिक्षित वो लोग भी जो विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध रखते है जो इस कानून के दुःखद परिणाम से पूर्णता अवगत है, आज देखती हूँ पढ़ती हूँ लोगों की मानसिकता तो एहसास होता है कि हम सब कहाँ से कहां आ गये हैं हम किसके पीछे भाग रहे हैं क्या हासिल करना चाहते हैं हमारा देश जागे बढ़ने के विपरीत बहुत पीछे जा रहा है और हम क्या खो रहे हैं उसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है ,अपने देश की वर्तमान अवस्था पर दिल में जो दुःख है उसको अभिवयक्त करने के लिए मेरे पास अलफाज़ भी नहीं, आखिर में इतना ही कहूँगी कि अपने दिलों में अपने रब का खौफ़ रखिये क्योंकि कोई देखे या न देखें वो देख रहा है, धार्मिक बनने से पहले अच्छा इंसान बनिये अपनी सोच को निष्पक्ष रखिये तार्किक बनिये, सही ग़लत में अंतर करना सीखिये, जो किसी के लिए सही नहीं है वो आपके लिए सही कैसे हो सकता है और ये भी छोड़ दीजिए तो इस बात को समझिये कि जो अच्छा इंसान नहीं वो रब को प्रिय कैसे हो सकता है, छोटी सी जिन्दगी हैं मोहब्बत के लिए ही कम है उसमें नफरतों को जगह देना अपना ही नुकसान करने जैसा है और ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपनी ज़िन्दगी को प्यार से स्वर्ग बनाते हैं या नफ़रत से नरक ,सोचना आपको है और समझना भी आपको ही है।
डॉ फौजिया नसीम शाद