धार्मिक कौन
धार्मिक कौन
(लघु कथा)
नवरात्रों की शुरुआत हो चुकी थी। घर घर में व्रत उपवास भजन कीर्तन पूजा पाठ आदि से मोहल्ले का लगभग हरेक घर परिवार सराबोर था। हर कोई जैसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के हेतु अपने इष्ट को खुश करने में जी जान से लगा था और ज्यादा से ज्यादा धार्मिक हो जाने की कोशिश में जुटा था। चारों तरफ धार्मिकता का सा माहौल था। परंतु अपनी गली का रखवाला कुत्ता कालू जिस किसी के भी घर कुछ खाने को मिल जाने की आस लेकर जाता तो उसे दुत्कार और मारकर भगा दिया जाता। कारण था उसके पैर का ज़ख्म जो कुछ दिन ही लगा था और धीरे धीरे नासूर बनता जा रहा था और उसमें कीड़े पड़ने लग गए थे। यह वही कालू था जो जब छोटा सा पिल्ला था तो बड़ा ही क्यूट था और हरेक घर के बच्चे उसे अपने घर ले जाकर खेलने के लिए आपस में झगड़ पड़ते थे और हरेक घर से इसे खूब प्यार दुलार और खाने को मिलता। परंतु आज इसका कोई भी तलबगार न था। परंतु एक दिन देखा गली में कालू जोर जोर से चीख रहा था। घर से बाहर निकलकर देखा तो गली में ही रहने वाला एक व्यक्ति महिपाल सिंह जिसको इन सभी पूजा पाठों व्रत उपवासों में कोई यकीन न था और मोहल्ले भर में अपनी नास्तिकता के लिए बदनाम था उसने उस जख्मी कालू को नीचे लिटा रक्खा था और उसके ज़ख्म पर डेटोल आदि डाल कर उसमे दवाई भरके पट्टी कर रहा था। ये पट्टी करने का सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। आज कालू फिर से पहले की तरह स्वस्थ है और गली की बखूबी रखवाली कर रहा है। महिपाल सिंह भी उसके ठीक होने से बड़ा प्रसन्न है और उसे खुद को नास्तिक कहे जाने या तथाकथित धार्मिक न होने का जरा भी रंज नहीं है। अक्सर मन में ख्याल आता है कि आखिर धार्मिक कौन।
सुन्दर सिंह