धारा 497
दोहे-कोर्ट का फैसला।
निर्णय कैसा कर दिया,लेकर के संज्ञान।
इक झटके में हर लिया,तूने सबके प्राण।।
रिश्ते नाते बह गए,यौन तृप्ति आधार।
आदिम युग को ला रहे,अब कैसा परिवार।।
न्यायालय ही रच रही,एक अलग संसार।
नैतिकता कैसी रही,हुआ वैध व्यभिचार।।
साहब तुम ऐसा करो,छोड़ो घर परिवार।
सारे बन्धन तोड़ दो,खोलो तुम बाज़ार।
मर्यादा अब क्या रही,नहीं लोक की लाज
वर्जना जो टूट गयी,क्या रहेगा समाज।।
✍पंकज प्रियम