धारा
कोमल सा मन लिए , हर किसी को अपने में समाहित किए ,
अनवरत उसकी बढ़ते रहने की प्रकृति सतत ,
कभी तोड़ती दंभ इन चट्टानों का विकराल ,
कभी मोड़ती खुद को लिए हृदय विशाल ,
करती कृपा तो बिखराती खुशियों के प्रपात ,
रौद्र रूप में बनी काल तो फैलाती अवसाद ,
जब चाहा रंग लेती खुद को दूसरों के रंग में ,
तो कभी उड़ाती रंगत सबकी रहकर संग में ,
कभी सुनाती मधुर संगीत कलरव
ध्वनि से ,
तो कभी मोहती मन चपल षोडशी नारी सी अपनी छवि से,
करती ओतप्रोत हर मानव को वह इस
प्रेरणा से सदा ,
धीरज रखने और जूझने इस संसार
समय-चक्र से सर्वदा।