धारणा बनाता उच्च मध्यम वर्ग!
आज कल के परिवेश में जब देश अनेकों प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है ऐसे में सरकार अपने वजूद को बचाने के प्रयास में लगी रहे तो जायज बनता है, किन्तु वह प्रयास सफल न हो रहे हों और फिर भी यह दिखाने की कोशिश की जाए कि सरकारी प्रयास काम कर रहे हैं सरकार कामयाब हो रही है तो जन सामान्य इसे समझता है कि सरकार अपनी कमियों को छुपाने में लग गई है! ऐसा ही कुछ वर्तमान समय में भी चल रहा है, पुरे देश भर में शायद ही कोई राज्य सरकार ऐसी होगी जहां कोई हलचल नहीं हुई है, सभी सरकारें जन आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकामयाब साबित हो रही हैं!
इन नाकामियों को छुपाने में सरकार को तो लगना ही था किन्तु इसे ढकने का काम अब उच्च मध्यम वर्ग के लोग भी करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, पहले पहल तो यह समझना कठिन हो रहा था कि जब अधिकांश लोग सरकारी व्यवस्थाओं से संतुष्ट नहीं हैं तब यह उच्च मध्यम वर्ग सरकार के पक्ष में खड़ा क्यों दिख रहा है! लेकिन धीरे-धीरे यह भी समझ आने लगा है कि यह वर्ग ही सरकार को इन हालातों में मजबूती देकर उसका लाभ उठाने में माहिर है!
एक ओर जहां आम इंसान दैनिक समस्याओं से जूझ रहा है और तब भी अपनी आम जरुरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है तब भी यह वर्ग दिनों दिन तरक्की पर तरक्की किए जा रहा है और आम इंसान की नाराज़गी को नकारते हुए सरकार के पक्ष में आवाज उठाते हुए नजर आता है!
ऐसे में मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग, निम्न आय वर्ग, और गरीब गुरबों की आवाज को नजरंदाज करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है! आम जनता इस संक्रमण काल में सबसे ज्यादा उत्पीड़न का शिकार हो रही है, चाहे काम धाम में कमी हो, चाहे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भटकना पड़ता हो, चाहे मंहगाई की दंश हो, चाहे बिमारी में उपचार से वंचित रहना पड़ता हो, चाहे आवागमन के साधनों की अनुपलब्धता हो!हर प्रकार से उसे ही इसकी प्रताड़ना सहनी पड़ी है! तब जब वह अपनी पीडा को असहमति के रूप में बयां करता है तो,यह अभिजात्य वर्ग/उच्च मध्यम वर्ग उसके इस अभिप्राय को अनुचित करार देने लगता है और सरकार के पक्ष में तर्क वितर्क करने पर आमादा हो जाता है!
यह वह वर्ग है जो कुछ समय पूर्व तक मध्यम वर्ग या उससे कम के स्तर से ऊपर उठकर आया होता है, परिस्थिति अनुसार कहें या उनके प्रयासों के परवान चढ़ने पर उनकी स्थिति उसके अन्य परिजनों से या पूर्व के संगी साथियों के समान ही थी, से उबर कर आगे बढ़ गया है, तो उसके सोचने समझने का तरीका भी बदल गया है, और अब वह उन्हें जो कभी उसके दुःख सुख के राही हुआ करते थे से एक दूरी बनाने में लग जाता है इस भय से की कहीं कोई मदद की गुहार लगाने ना आ जाए! वही अपनी बदलती आर्थिकी पर गर्व करने लगता है और दूसरे को कमतर आंकने का प्रयास ही नहीं करता बल्कि उसे निकम्मा नकारा, नालायक जाने क्या क्या कहने-समझने लगता है!यही वह वर्ग है जो सरकारी सुविधाओं को अपनी जागीर समझते हुए दूसरे को मिलने पर खैरात बताता है! अपने को टैक्स पेयर और दूसरों को खैरात पर पलने वाला बता कर,रौब गांठता है!यही वह अभिजात्य वर्ग है जो नवधनाढ्यों में शामिल होने को आतुर है,तब चाहे उसे अपने से उच्च कुलीन वर्ग की हेकड़ी को बर्दाश्त ही कर्मों न करना पड़े! और यह उच्च कुलीन वर्ग तो अधिकांशतः सरकारों का ही पक्षधर रहा है!
हमारे जन प्रतिनिधि भी इसी श्रेणी में सुमार हो गये हैं और एक बार उन्हें प्रतिनिधि चुन लिया जाए बस फिर तो उनकी भी पौ बारह है! और आम जन मानस वहीं का वहीं!ना उसके हालात सुधरते हैं ना उसके सितारे चमकते हैं, वह उसी गुरवत में जीने को मजबूर है! जिसमें उसने जन्म लिया है और मर जाना है!
वह समाज को कोई दिशा देने की हालत में नहीं है ना ही वह ऐसी हिमाकत करने को तैयार है!
जैसा कि किसानों ने किया हुआ है,आठ माह से अपने आंदोलन को चलाए जा रहे हैं और जाने कब तक उसे कायम रखने में समर्थ हो सकते हैं,इन लोगों की बात मानने को ही सरकार तैयार नहीं है तब ये दीन हीन इंसान के वश में सरकार की खिलाफत करना कहां आसान है! इस लिए वह सहज भाव से सहे जा रहे हैं, इस उम्मीद में कि कभी तो हम पर भी निगाह पड़ेगी, सरकार की या परवरदिगार की!