धान
आँखों में सैलाब है, सीने में तूफान।
कृष्क नित्य ही रोपता , आसमान में धान।। १
सावन की बूँदें पड़ी,खुश हैं सभी किसान।
अमृत भरा है बूंद में,अब रोपेगें धान।। २
गतिमय शोणित श्वेद में,हुई बुवाई धान।
सूर्य किरण की आँच में,पके कृषक के प्राण।। ३
पनप रहीं हैं दूधिया, शीत लहर में धान ।
पुरवा पछुआ चल रही, हरी पताका तान ।। ४
लहर लहर हर खेत में, चमक रहें हैं धान।
महक रहीं हैं बालियाँ, सुरभित हुआ जहान। |५
कोटि-कोटि दूध-सा, हरित वर्ण सा रूप।
पोर-पोर में मधु कलश,बिखरे इत्र अनूप।। ६
वसुंधरा लहरा रही, पहन हरी परिधान।
हरियाली की ये छटा , जीवन का वरदान।। ७
दूर क्षितिज तक दृश्यवत, अविरल क्यारी धान ।
श्वेत सुनहरी बालियाँ,भरे खेत खलिहान।।८
हरे खेत लहरा रहे,भरे हुए हैं धान।
खेतिहरों में आ गया,उसे देख कर जान।। ९
लहलह करते खेत में, हरे-भरे हैं धान।
भूख मिटाते हैं यही, जीवन देते दान।।१०
उगल रही सोना धरा, पके खेत में धान।
कृषक कटाई कर रहे,लिए सुखद मुस्कान ।।११
बिके कृषक के खेत भी, गए शहर में धान।
कर्जा इतना बढ़ गया, फाँसी चढ़ा किसान।।१२
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली