धवल चांदनी की रातों में
धवल चांदनी की रातों में
धवल चांदनी की रातों में, आओ प्रिये कुछ पल सुस्ता लें
युगों-युगों से साथ हमारा, मधु स्मृतियों की नदी में डूबें
गए युगों का प्रेम जो संचित , आओ उसको फिर से जी लें
कभी जो भूले एक दूजे को, चलो आज उस पल को भूलें
सदा रहा सहकार प्रेम में, आओ हम अब भी साथ चलें
धवल चांदनी की रातों में, आओ प्रिये कुछ पल सुस्ता लें।
ये तारे, क्षितिज, ये गगन प्रिये, अब भी तो वही हमारे हैं
जाज्वल्यमान सूरज का ताप, चंदा की चंदन शीतलता है
पहले भी चांदनी मुस्काती थी, अब भी वही मुस्कान प्रिये
चलो बैठ इस आम्रकुंज में, करें प्रकृति मधुपान प्रिये
संग-संग हों, श्रांत न हों हम, कदम-कदम हम साथ चलें
धवल चांदनी की रातों में, आओ प्रिये कुछ पल सुस्ता लें।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता , मौलिक/ स्वरचित।