धवल चाँदनी की रजनी में
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इस धवल चाँदनी की रजनी में
उपवन की कलियाँ चिटक रहीं हैं,
शबनम की अमृत से मिलकर,
कुछ पुष्प बने कुछ कली बनी,
धवल चाँदनी की रजनी में……,
जहाँ कमलिनी चमक रही है
रात की रानी महक रही है,
आओ फिर से जी लें हम,
यादों के उन स्वर्णिम पल को,
इस धवल चाँदनी की रजनी में….,
मन को कितना हर्षाते थे ,
पत्तों से आती वो किरणे,
कैसे खेला करती थीं -वो,
अधरों और कपोलों से,
इस धवल चाँदनी की रजनी में…..,
आओ –प्रिये…,
चलो चलें… उपवन में,
फिर से जी लें…..,
जीवन के उन मधुर पलों को,
इस धवल चाँदनी की रजनी में ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
09-02-2024