धर्म निभाता चल
मुक्तक
सत्य अहिंसा प्रेम धर्म हैं मन से इन्हें निभाता चल।
पर जो दंभी कष्ट प्रदायक उनका मान नवाता चल।
सब कालों में एक धर्म से न्याय कहाँ हो पाता है।
शास्त्र शस्त्र जब जो उत्तम हो वही नीति अपनाता चल।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)