धर्म ग्रंथों के भिन्नतापूर्ण अनुवादों से उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति पर एक परिचर्चा |
कुछ दिनों पहले मैने पुरी श्रीमद्भगवत् गीता पढ़ी और अब भागवत पुराण पढ़ रहा हूं | पढ़ने के दौरान कुछ श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मैं ने इंटरनेट पर देखा तो कुछ अनुवाद मैं जो पुस्तक पढ़ रहा था उससे थोड़े अलग मिले और जब मैने विडियोज देखे तो उनमें भी कुछ हद तक यही मिला | यही वजह है कि कहीं-कहीं भ्रम की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी | पर ज्यादा ढूढ़ने पर स्थिति साफ हो गयी | फिर तो बस एक सिलसिले की तरह युट्युब पर डिबेट देखने लगा तब जाकर पता चला कि इस स्थिति ने तो भयावह रुप ले लिया है और ये स्थिति केवल विधर्मीयों की ही नही है समधर्मीयों की भी है | जिस पर मुझे लगता है कि एक विस्तृत परिचर्चा की जरुरत है | इसके लिए मेरे मत में इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए |
हमारे कुछ धार्मिक ग्रंथों के बारे में कहा जाता है की वो लगभग 6000 BCE से भी ज्यादा पुराने हैं और इस बात पर गौर करें के ऐसा कहा जाता है इसकी असली डेट क्या है ये किसी को पता नहीं है और ये डेट्स भी संवतों के अनुसार अलग-अलग मानी जाती है | जैसे युधिष्ठिर संवत के अनुसार लगभग 8000 BCE विक्रम संवत के अनुसार 6000 BCE शक संवत के अनुसार 5000 से 4000 BCE शकांत संवत के अनुसार 3000 से 2500 BCE | वर्तमान की हमारी जो इतिहास की किताबें हैं उनमें ऐतिहासिक घटनाओं की जो डेटींग यानी की कालक्रम है वह शकांत संवत के अनुसार हैं जिसे शक संवत समझा जाता है ऐसा कुछ इतिहासकारों का मत हैं | इससे भी कालक्रम में बहुत सी अनियमितताए उत्पन्न हुई होंगी माना जा सकता है |
अब हम यदि सबसे आखिर का संवत ले तो भी ये ग्रंथ आज के हिसाब से 5000 से लेकर 4500 साल पुराने हैं | अब हम अगर इनके अनुवाद की बात करें तो हमे समझना चाहिए कि इनका इन 4-5 हजार सालों में अब तक हजारों बार ट्रांसलेशन यानी की अनुवाद हुआ होगा और हमे इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए की किसी भाषा को जैसी वो आज हमारे समय में हैं वैसी होने में हजारों वर्ष का समय लगा है | जैसे मैं अपनी बात हिन्दी भाषा का उदाहरण देकर ही समझाना चाहूंगा | प्रारंभ में जो हिन्दी थी करीब 1000 वर्ष पूर्व वो प्राकृत के नाम से जानी जाती है आज इतिहास में , फिर यही आगे चलकर देशभाषा हुई , पिंगल हुई , सधुक्कडी़ हुई तब कही जाकर आज इस स्वरुप में हम तक पहुच पाई है | तो बदलाव के 1000 वर्षों में भी इन सभी परिवर्तित भाषा कालखण्डो में भी अनुवाद आदी कार्य होते रहें हैं | तो यह सब बदलाब भी आज सम्मिलित हो गए हैं |
जैसा की हम सब जानते हैं कि भारतवर्ष पर पिछले 2-3 हजार वर्ष से बाहरी आक्रमण होते रहे हैं और हमारे बहुत से मंदिर एवं विश्वविद्यालय बर्बर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं आग के हवाले कर दिए गए हैं जिसमें सहेज कर रखा गया हमारे पूर्वजों का हजारों साल का ज्ञान नष्ट कर दिया गया है | जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हम सब को पता है जिसे जब आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगा कर जलाया तो उसमें 30 लाख फस्ट हैड बुक यानी की जिनकी प्रतिलिपि नही है थी जिन्हें पुरा जलने में तीन माह का समय लगा था | तो इन सब में भी हमने अपमे बहुत से अनमोल ग्रंथ खोए हैं या आज जिनके कुछ भाग मिले हैं उनके कुछ भाग खो दिए हैं , हमें यह भी ध्यान में रखना होगा |
पर सबसे महत्वपूर्ण ये बात है जिसे अनदेखा नही करना चाहिए कि आज कल ही किसी एक ग्रंथ की ही किसी एक भाषा में सैकड़ों अनुवादकों का कार्य उपलब्ध है | तो किसी एक अनुवादक का अनुवाद लेकर फिर इस तरह की डिबेट करना मुझे तो पानी में लाठी पीटने जैसा ही लगता है |