धर्म को अधर्म न बनाएं
धर्म एक ऐसा रास्ता है जो हमें बेहतर ढंग से जीना सिखाता है। अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करता है। बुराई से दूर रखने की नसीहत देता है। इसी को ध्यान में रखकर उस अदृश्य शक्ति ने हमें धर्म के रूप में एक ऐसा विधान सौंपा है जो हमें अपने दैनिक जीवन में सभी काम बेहतर तरीके से करना सिखाता है।
मैं किसी एक धर्म विशेष की बात नहीं करता। मेरा मतलब है दुनिया के सभी धर्म आपस में एकता, भाईचारा, दया, करुणा, परस्पर सहयोग, दूसरों की मदद करना, जरूरत पर दूसरों के काम आना के साथ दैनिक जीवन में संपादित होने वाले विभिन्न क्रियाकलापों को बेहतर तरीके से करने का तरीका सिखाता है।
इसके उलट आज के परिवेश में धर्म की परिभाषा ही बदल दी जा रही है। लोग धर्म को अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। वैसे तो दुनिया का कोई भी धर्म गलत नहीं है। तमाम चीजें ऐसी हैं जो सभी धर्मों में कॉमन है। इसके बावजूद तमाम लोग ऐसे हैं जो धर्म को सिर्फ अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। धर्म में अपने हिसाब से संशोधन, उसका अपने हिसाब से प्रयोग करना एक आम बात हो गई है।
मुझे नहीं लगता कोई भी धर्म इस बात की शिक्षा देता हो कि किसी का दिल दुखाओ, किसी का सर कलम कर दो या किसी को पीटकर मार डालो। इस समय शायद हमारे देश में सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर ही उन्माद और वैमनस्यता फैल रही है।
इस तरह की अराजकता को रोकने के लिए मेरे विचार से तो बस एक ही उपाय हैं कि धर्म की आड़ में कोई भी ऐसा काम नहीं करने दिया जाए जिससे किसी को तकलीफ हो। उदाहरण के तौर पर सड़क घेरकर होने वाले धार्मिक आयोजन, रात में तेज आवाज में बजने वाले लाउड स्पीकर, ऐसे काम जिससे यातायात बाधित हो… आदि पर पूरी तरह से पाबंदी होनी चाहिए।
होना तो यह भी चाहिए कि इंसान अपने धर्म के किया-कलाप घर की चहारदीवारी के अंदर पूरा करें। घर से बाहर धर्म लेकर न निकले तो ही बेहतर रहेगा। वैसे तो यह भी धर्म है किसी जरूरतमंद के काम आया जाए, किसी भटके को रास्ता दिखा दें, प्यासे को पानी पिला दे,भूखे को खाना खिला दें, बीमार की मदद कर दें आदि।
वैसे मेरा मानना तो यही कि एक इंसान को अपने धर्म के मामले में बिल्कुल कट्टर होना चाहिए। यहां कट्टरता से तात्पर्य यह है कि अपने धर्म के प्रति मजबूत और दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। क्योंकि जब व्यक्ति अपने धर्म के प्रति मजबूत होगा तो वह वह किसी भी स्थिति में धर्म की आचार संहिता का उल्लंघन नहीं करेगा, जब धर्म की आचार संहिता के अंदर रहेगा या उसकी सीमाओं में रहेगा तो वह भूले से भी कोई गलत काम नहीं करेगा।
यह भारत देश है जिसमें विभिन्न धर्म संप्रदाय जाति वर्ग वर्ग गोत्र आदि के लोग रहते हैं। इसके बावजूद का अतीत बहुत अच्छा रहा है। विविधता में एकरूपता, अनेकता में एकता, गंगा-जमुनी तहजीब ही यहां की एक खास पहचान रही है। आज यह सब बातें सिर्फ इतिहास की किताबों तक सिमट कर रह गई है। इस समय रोजाना के लड़ाई-झगड़े आम बात हो गई है। झगड़े होना तो एक अफसोस की बात है ही। उससे भी बहुत बड़ा अफसोस यह है कि यह झगड़े धार्मिक भेद के आधार पर हो रहे हैं।
आखिर में मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा धर्म सबके अलग अलग है। सब की पूजा इबादत का तरीका अलग हो सकता है लेकिन कहीं न कहीं धर्म एक ही रास्ता दिखाते हैं। वह रास्ता है दया, करुणा, प्रेम भावना, सद्भावना, समर्पण, सहयोग का। हम भले ही रस्म-रिवाज और पूजा या इबादत के तरीकों पर अलग हो लेकिन तमाम चीजें ऐसी हैं जिन पर हम सब एक हैं। तो क्यों न हमें उन चीजों पर सामने आकर हाथ मिलाना चाहिए जो सभी धर्मों में एक हैं।
© अरशद रसूल