धर्म के ठेकेदार
झूठे हैं तेरे मठ_मंदिर,
तभी तो तू जाने नहीं देता अन्दर ।
समदर्शी की आड़ में चढ़वाते,
दसी,पंजी, और छिदाम ,
और हलूआ , पूड़ी,बदाम।
घट कर जाते भालू, बंदर।
झूठे हैं तेरे मठ मंदिर।
क्या प्रभु खाता है?
क्या प्रभु मांगता है ?
प्रभु के ह्रदय में अमृत,
तेरी बुद्धी हो गई विस्मृत,
नहीं चाहिए ऐसे राम,
रहे ताले के अन्दर।
हमें ऐसे चाहिए राम,
जो दुख दर्द का पिये जाम,
एकता का दे पैगाम।
ऐसे चाहिए राम ।
झूठे हैं तेरे मठ मंदिर।
प्रमाण _
शिवरी थी दलित की बिटिया,
राम पहुंचे उनकी कुटिया,
संग खाई जुटी गुठलियां,।
जग में अछूत थे संत रविदास,
लेकिन गंगा आई उनके पास,
क्षतराणी मीरा बनी दास।
जिनने दिया ज्ञान का ठंकर
झूठे हैं तेरे मठ मंदिर
हे धर्म के ठेकेदार ,
तूने जग में किया अंधकार,।
अब दीप जल उठा है,
ह्रदय “कवि अंशु” के अन्दर।
झूठे हैं तेरे मठ मंदिर।
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नारायण अहिरवार
अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश