आख़िर कब तक ।
तुम यू ही मुझे कब तक परेशान करोगे ,
गर जान लो मेरी किरदार हैरान रहोगे ।
तेरी औक़ात नही अभी , जो झुका सके हमे ।
अगर खुद पे आ जाऊ तो हाँथ मलोगे ।
ये जो तू सोचता है मैं की डर जाऊंगा कभी ,
ऐसे सपनों में ही तुम शायद खोये से रहोगे ।
मैं वो किरदार नही जो तेरी शर्तो को मान लू
तुम्हारे कहने पे मैं खुद को यू हार मान लू ।
मैं वो जलता हुआ चराग़ हु जो तू जान ले ,
जिंदगी भर यू ही मुझे तुम याद करोगे ।
मेरी कमजोरी को यू तू बताता ही रहा ।
मेरी सफलताओं पर तुम भी कभी सलाम करोगे ।
खामोशियों को यू तू कमज़ोर ना समझ ,
मैं जो मुँह खोल भी अगर दू तो शायद पता नही ,
दिन में भी आसमाँ में तारे ही गिनोगे ।
अल्लाह और भगवान् एक ही है मगर ,
गर दुआ कर भी दू तो हमेशा परेशान रहोगे ।
मेरी फितरत को तू समझ जा वक़्त है तुझे ,
गर निकल जाएगी वक़्त तो आँसू बहाते फिरोगे ।
:-हसीब अनवर