धर्म – कर्म
धर्म – धर्म क्यों करते हो,
कर्म क्यों नहीं करते हो ।
धर्म सबका अनेक है,
पर कर्म सबका एक है ।।
मैं कहां कहता धर्म मत करो ।
पर कर्म करने से क्यों डरो ।।
धर्म का फल मीठा होता है,
जो केवल स्वाद बनाता है ।
कर्म का फल तीखा होता है,
जो दुष्ट रोगों को मिटाता है ।।
सच रहो सच बोलो तुम,
नहीं किसी से कभी डरो तुम ।
दिल में मोहब्बत रखो तुम,
प्यार का रिश्ता जोड़ो तुम ।।
मंदिर, मस्जिद, मक्का मदीना,
बनवाओगे तुम गिरजाघर ।
पर दुनिया के भरम में रह कर,
क्या खो दोगे तुम अपना घर ।।
हाँ, माना की देवी देवता,
और होते हैं भगवान ।
पर इस धरती पर कर्म करने वाला ही,
होता है सच्चा इंसान ।।
कवि – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳