धर्म और सिध्दांत
धर्म और सिध्दांत
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् | परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
” जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं.”
मानव जीवन अनेक जटिलताओं से भरा है । यहाॅ एक ओर चुनौतियां हैं, सिध्दांत हैं तो वहीं सत्य- असत्य जैसी बातें भी हैं ।
चाहे रामचरितमानस हो, जहां श्री राम सत्य पर अडिग रह कर , जीवन में आ रही चुनौतियों का सामना कर रहे है , लेकिन अपने सिध्दांतों से विमुख नहीं रहें हैं ।राजतिलक और वनवास जो कि परिस्थितिजन्य थे, वह विचलित नहीं हुए , और माॅ के वचनों को मानते हुए वनवास के लिए प्रस्थान किया ।
वहीं महाभारत का युद्ध भी यद्यपि असत्य पर सत्य की विजय के रूप में जाना जाता है, कृष्ण ने यहाॅ उन सभी संभव बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया , जिससे महाभारत के किसी पात्र के साथ अन्याय न हो और दोषी को यथासमय, यथासंभव उचित सजा मिले ।
और इन्ही सिध्दांतों पर रामचरितमानस और महाभारत में सत्य और धर्म की विजय
हुई ।