धर्म और विडम्बना
कुछ लोग इकट्ठा
बस, रेल, कार में नित्य सफर करते हैं,
विभिन्न जातियों से संबद्ध रखने वाले व्यक्तित्व,
होते है,
मगर कोई जाति विशेष के लिए नहीं,
धर्मांधता जरूर झलक देती है,
ये हिंदू हिंदुत्व सनातन शाश्वत सत्य
क्या है ।
किन्हें कहते हैं ।
हम में से
शायद कोई है.
जो इस व्यवासायिक युग में भी,
रघुकुल रीति से अपना उल्लू सीधा कर रहे है,
इन्होंने सनातन /शाश्वत सत्य को नये ढंग से परिभाषित कर लिया है ।
अपना व्यवसाय जिंदा रखना है तो,
जातियों में बंटे हुआ समाज,
जिंदा रखना है,,
इसके साथ साथ संगठित न होने देना,
फूट डाल डाल कर ही,
समाज में समरसता बरकरार रखी जा सकती है,
.
इस विषय के समर्थक हार मान लेते हैं,
क्योंकि अमानवीय कर्मकांड /पाखंड /अंधविश्वास के सहारे,, इतना लंबा सफर,
इसलिये गुजर गया,
क्योंकि देश का इतिहास गुलामी का रहा है ।
ऐसे में प्रश्न ये उठता है,
कौन से वर्ण के लोग हैं,
जो रोटी बेटी के रिश्ते रखते थे,
उनके यहां कैसी गुलामी,
कैसा मातम,
.
गुलाम कौन रहे,
और
उनकी झटपटाहट
जायज है.
जिंदा रहने के लिए,
सभी धार्मिक आस्तिक नास्तिक लोगों की जरूरत है,
एक विशेष समुदाय ने कर्मकांड की उत्पत्ति करके
खुद को स्व – श्रेष्ठ घोषित कर लिया,
एक नया चलन चल पड़ा,
मनोबल /आत्मविश्वास क्षीण करके,
कारण प्रारब्ध कह कर पिण्ड छुड़ा लिया.
स्वर्ग नरक का लोभ दिखा कर,
योजनाओं प्रबंधन को नियमित किया गया,
हुनरमंद स्व रोजगार प्राप्त लोग
समाज का एक कमेरा-वर्ग.
जिन्हें सेवक कह कर,
सबकुछ हड़फ लिया गया,
उनके पास संपदा के नाम सिर्फ़ कला रह गई,
जितनी भी जमीन जायदाद धन संपदा,
भौतिक वस्तुएं उनके नाम पर है,
.
सब मौन होकर सुन रहे थे,
तभी बात मुस्लिम धर्म पर आ गई,
हम में से कोई आदमी,
उनके विषय में अल्फ़ बे तक नहीं जानते,
मुझे सिर्फ़ इतना मालूम हैं,
वे देश के अल्प-संख्यक लोग है.
मस्जिद उनके धार्मिक स्थल का नाम है,
वे पांच समय की नवाज अदा करते है,
हिन्दुत्व की आड़ में
उन पर जायजादती भी वो लोग कर रहें है,
जो उस बंटवारे के पक्ष में थे,
आज वे बंटवारे का विरोध अग्रणी तरीके से कर रहे हैं