धर्मरोष
क्रोध अर्थात रोष मानव का स्वभाव है, परन्तु यहां यह देखने की आवश्यकता है कि आप धर्मरोष करते हैं या कामरोष। उदाहरण के लिए जिस प्रकार गुरु अपने धर्म के अनुसार यदि उसका शिष्य शिक्षा ग्रहण करने के प्रति सज्ज ना हो, या व्यक्ति का उसके परिवार द्वारा धर्मविरुद्ध कार्य करने पर क्रोध प्रकट करना अथवा संतान द्वारा अनुचित कार्य करने पर पिता का क्रोध प्रकट करना। इस क्रोध में उसका अपना हित या कामभाव ना होने के कारण यह धर्मरोष है और यह आवश्यक है। अपनी इच्छाओं व आनंद की पूर्ति ना होने पर क्रोध प्रकट करना कामरोष है। अब बात यह भी है कि धर्म से मानव विमुख हो चुका है, तो अगर कहीं पर धर्म हेतु धर्मरोष प्रकट किया जाए तो यह हमें समझ नहीं आता और हम तर्क करने का प्रयास करते हैं कि दूसरा व्यक्ति क्रोध व गलत कर रहा है, क्यूंकि हमारे आस-पास का वातावरण ही ऐसा है कि कामवासना और माया के प्रभाव ने मानव को अपनी बेड़ियों में एक पशु की भाँति जकड़ लिया है।
पंकज कुमार तोमर