Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Dec 2022 · 13 min read

धर्मराज

धर्म राज –

यमराज पृथ्वी लोग के दूसरे चरण की यात्र पूर्ण करने के उपरांत यमलोक वापस लौटने के पर शनि महाराज से अपनी अनुपस्थिति के कार्यो का लेखा जोखा जानने के उपरांत पुनः कैलाश पहुंचे कैलाश पहुँचने पर बहुत आश्चर्य में पड़ गए वहाँ भोले नाथ नन्दी नही थे वहां सिर्फ माता पार्वती एव गणेश से ही मुलाकात हुई।

माता पार्वती ने यमराज का स्वगत करने के बाद यमराज को पृथ्वी लोक के तीसरे चरण की यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हुए उनके पृथ्वी लोक के दो चरणों की यात्रा की जानकारियां प्राप्त किया ।

यमराज पुनः यमपुरी लौटने के उपरांत शनि महाराज को अपने पृथ्वी पर अपने तीसरे चरण की यात्रा के सम्बंध में बताया और शनि महाराज को उचित निर्देश देने के उपरांत पृथ्वी लोक पर पुनः पहुंचे ।

पृथ्वी पर पहुँचने के बाद उन्होंने हितेंद्र जो उनका पृथ्वी लोक पर किशोर सखा था से पृथ्वी पर जाने के मशवरा मांगा हितेंद्र ने कहा महाराज इस बार आप पृथ्वी लोक के किसी प्रबुद्ध प्राणि मानव के यहाँ जाए वहां आपको पृथ्वी के लोंगो के बौद्धिक विकास विज्ञान एव तकनीकी विकास की जानकारियां प्राप्त होंगी जो सम्भवतः यमलोक के लिए उपयोगी सिद्ध होंगी ।

हितेंद्र ने कहा महाराज ऐसे किसी परिवार का आतिथ्य स्वीकार करे जिस परिवार में शिक्षित और वैज्ञानिक रूप से प्रौढ़ लोग ही रहते हो यमराज को हितेंद्र का मशविरा उचित लगा ।

यमराज सीधे भरत भारत की राजधानी दिल्ली पहुंचे जिसके विषय मे पौराणिक मान्यता है कि खण्डव वन के स्थान पर इंद्रप्रस्थ अर्जुन द्वारा भगवान श्री कृष्ण के दिशा निर्देश में बसाया गया था भगवान श्री कृष्ण कर्मयोग सिंद्धान्त के पृथ्वी लोक प्रणेता एव अर्जुन धनुर्विद्या का ब्रह्मांड शिखर एक नर तो दूसरा नारायण दोनों के समन्वयक प्रायास से बसाए गए इंद्रप्रस्थ में निश्चय ही निवास करने वाले विद्वान ज्ञानी और संसय भ्रम के भंवर जाल से बाहर होंगे।

इसी विश्वास के साथ यमराज इंद्रप्रस्थ जिसका वर्तमान में दिल्ली के नाम से मशहूर है सेंट स्टीफेन स्कूल के सामने पहुंचे और सोचने लगे कि कैसे किसी ज्ञानी विज्ञानी परिवार के सदस्य के रूप में उन्हें किसी घर मे प्रवेश मिलेगा स्कूल के सामने इधर उधर टहल ही रहे थे कि स्कूल की छुट्टी हुई और बच्चे अपने अपने बस में सवार हुए और ड्राइवर अपने अपने निर्धारित रूटों पर बच्चों को उनके घर पहुंचने चल पड़े यमराज भी मच्छर का वेष धारण कर बस में बैठ लिए।

बस हर बच्चे के उसके स्टॉप पर छोड़ती जा रही थी सभी स्टाप पर उनके संरक्षक या माता पिता लेने के लिए बस आने की प्रतीक्षा करते महानगरों में छोटे बच्चों को स्कूल तक पहुँचने लाने की जिम्मेदारी अमूमन उन बुजुर्गों की होती जो अपने होनहार बहु बेटो के पास रहते व्यस्तता के कारण बहु बेटो को बच्चों को स्कूल पहुंचने एव छोड़ने की जिम्मेदारी बुजुर्ग माँ बाप को दे देते जिनके पास कोई कार्य नही होता सुबह शाम महानगरों की पार्कों में टहलना बाकी समय मे घर की सब्जी लाना एव छोटे बच्चों को स्कूल छोड़ना यही काम रहता यह भी कार्य उन बुजुर्गों के लिए होता जो अच्छे पदों से सेवानिवृत्त रहते और उन्हें पेंशन अच्छी खासी मिलती है।

उन बुजुर्गों की स्थिति तो और भी बदतर जिनके पास बुढ़ापे में गुजारे के लिए अपनी कोई पेंशन आदि की आय नही रहती ।

विराज सेना के मेजर जनरल से सेवा निबृत्त थे पत्नी तांन्या भी सेना के मेडिकल कोर से सेवा निबृत्त थी और बेटे तरुण के हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करती विराज को अच्छी खासी पेंशन मिलती और बेटा तरुण एव बहु डॉ सुमन लता उनको बहुत आदर सम्मान देते उनके पास आदिवासी समाज के कल्याणार्थ इतनी समस्याएं रहती जिसके समाधान के लिए उन्हें बिभिन्न कार्यालयों मंत्रालयों में भाग दौड़ करना रहता फिर भी उन्हें पोते उत्कर्ष को बस स्टाफ छोड़ना अच्छा लगता और लेने भी स्वंय जाते जबकि उत्कर्ष कि उम्र दस वर्ष हो चुकी थी उत्कर्ष को कोई आवश्यकता ही नही थी बस उत्कर्ष के स्टाफ पर पहुंची उत्कर्ष उतरा और मच्छर से यमराज इंसानी रूप में आ गए।

ज्यो ही विराज अपने पोते उत्कर्ष को लेकर चले अचानक किसी तरफ से उनके सीने की दाहिनी गोली लगी यमराज यह दृश्य देख बहुत आहत हुये उन्होंने भीड़ से घिरे विराज एव उनके पास रोते विलखते उत्कर्ष को देख बहुत द्रवित हुये उन्होंने विराज को तुरंत उठाया और उत्कर्ष के बताने पर विराज को बेटे तरुण के हॉस्पिटल ले गए रोता विलखता उत्कर्ष भी साथ था ।

हॉस्पिटल में डॉ सुमन लता डॉ तन्या डॉ तरुण सभी मौजूद थे उत्कर्ष को रोता विलखता देख और अंजनवी के साथ विराज को जख्मी देख सभी के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई सभी बहुत घबड़ाये हुये थे हॉस्पिटल के एक अन्य डॉक्टर डॉ भौमिक ने विराज का जल्दी जल्दी ऑपरेशन कर लगी गोलियों को निकाला विराज बेहोश थे डॉ तांन्या डॉ तरुण डॉ सुमन लता ने उत्कर्ष से घटना की पूरी जानकारी प्राप्त की और उसके साथ आये अंजनवी से उसका परिचय पूंछा यमराज बोले मेरा नाम धर्मराज है मैं मूलतः एक आदिवासी हूँ और काम की तलाश में दिल्ली इधर उधर बहुत दिनों से भटक रहा हूँ मैं काम की ही तलाश में निकला था कि यह घटना घटी और मैं उत्कर्ष के साथ विराज को लेकर यहाँ तक आया।

डॉ तांन्या ने धर्मराज से शिक्षा और अनुभव की जानकारी चाही की वह जानना चाहती थी कि क्या काम धर्मराज कर सकते है धर्मराज ने कहा कि मैं सिर्फ श्रम कर सकता हूँ चौकीदार का कार्य कर सकता हूँ मजदूरी कर सकता हूँ डॉ तन्या ने कहा ठीक है आप गार्ड का कार्य आज से हॉस्पिटल में करे और गार्डरूम में रहे वेतन बाद में काम की दक्षता आदि देखने के बाद ही बताएंगे ।

यमराज को क्या चाहिए था हितेंद्र के सुझाव के अनुसार इतना शिक्षित ज्ञानी परिवार जिसमें सेना का उच्चाधिकारी ,डॉ जो आधुनिक समाज के उच्च अभिजात्य एव शिक्षित समाज के आदर्श थे ।

दिल्ली में विराज पर अचानक हुये हमले की जोर शोर से चर्चा हो रही थी उस दौर में सिर्फ प्रिंट मीडिया ही था सरकार भी देश के जांबाज सिपाही सपूत पर अचानक हमले को लेकर चिंतित थी सरकार ने अपराधी को पकड़ने के लिए अपने सारे तंत्रों को लगा दिया था ।

इधर विराज को होश आया उसने पुलिस को घटना के विषय मे अपना बयान दिया फिर उत्कर्ष एव स्कूल बस ड्राइवर आदि के बयान पुलिस द्वारा लिए गए तहकीकात शुरू की गई ।

विराज पर हमले को लेकर आदिवासी समाज बहुत चिंतित था क्योकि विराज ने बहुत मेहनत एव संघर्ष के उपरांत आदिवासी समाज मे चेतना का जागरण कर उनके वास्तविकता से एव उनके सामाजिक राष्ट्रीय महत्व से उन्हें परिचित करताते हुये निराशा के अंधकार एव घनघोर जंगलो की भयानकता से बाहर निकाल कर उनके लिये मार्ग प्रशस्त किया था जिसके कारण आदिवासी समाज स्वावलंबी शिक्षित होकर आत्मविश्वास से आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ा रहा था जो भारत जैसे राष्ट्र में महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव का प्रतीक था।

विराज की हालत स्थिर रहते धीरे धीरे सुधर रही थी अस्पताल में यमराज पल प्रतिपल विराज की देख रेख के साथ अपनी गार्ड की जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करते धर्मराज के कार्यो सक्रियता से डॉ तन्या डॉ सुमन लता तो बहुत प्रभवित थे डॉ तरुण भी खासा प्रभावित थे विराज को स्वस्थ होने में एक माह का समय लग गया विराज अस्पताल से घर चले गए कभी कभार विराज को देखने धर्मराज जाते रहते ।

एक दिन विराज ने पत्नी तन्या एव बहु बेटे से परामर्श करने के उपरांत धर्मराज को घर पर ही रखने के लिए राजी कर लिया पत्नी तांन्या एव बहु बेटो को कोई आपत्ति नही हुई और धर्मराज घर पर ही रहने लगे और बहुत जल्दी ही विराज एव परिवार के लिए प्रिय एव महत्वपूर्ण अंग बन गए।

उधर पुलिस पुलिस विराज पर हुए हमले की जांच में जुटी कोई कोताही नही करना चाहती थी क्योकि प्रति दिन नए नए अंदाज में शासन पर दबाव पड़ रहा था ।

धर्मराज और विराज खाली समय मे साथ बैठते और हास परिहास करते हालांकि उनके पास इस कार्य के लिये बहुत समय नही रहता क्योकि विराज ने अपने सामाजिक सेवाओ का दायरा इतना बढ़ा लिया था कि समय कभी कभी ही मिलता जब काम के बोझ से थक जाते ।

दिल्ली भारत का दिल है और दिल्ली का गति भारत के दिल की धड़कन की तरह पूरे देश मे मानी जाती है दिल्ली की अपनी खसियत एव पहचान है दिल्ली रामलीला मैदान से रावण दहन देखकर विराज एव धर्मराज अपनी गाड़ी से लौट रहे थे डॉ तन्या डॉ सुमन लता डॉ तरुण एव उत्कर्ष एक साथ लौट चुके थे।

धर्मराज ने सड़क के किनारे एक घायल को कराहते हुये देखा और विराज से सड़क के किनारे कार रोकने के लिए कहा विराज ने कार रोक दिया रात्रि के साढ़े बारह बज रहे थे एव अंग्रेजी तारीख भी बदल चुकी थी विराज एव धर्मराज एक साथ उतरे धर्मराज सड़क के किनारे घायल अवस्था मे पड़े व्यक्ति के पास गए और बोले महाराज अश्वत्थामा आप कलयुग में वो भी विजय दशमी के दिन यहां क्यो पड़े है ?धर्मराज एव अश्वथामा के मध्य हो रही वात चित को विराज सुन तो पा रहा था धर्मराज को देख भी पा रहा था मगर अश्वत्थामा को नही देख पा रहा था अश्वत्थामा बोले महाराज यमराज आप पृथ्वी पर क्यो भ्रमण कर रहे है वह भी कभी प्रहरी तो कभी सेवक तो कभी जीवन दाता बनकर ?धर्मराज ने अश्वत्थामा को बताया कि उन्हें भगवान शिव शंकर ने आदेशित कर रखा है कि पृथ्वी पर जाकर सप्त चिरन्जीवियों से मिले और युगों युगों का पृथ्वी निवास का उनका अनुभव जाने और अवगत कराएं उसी उद्देश्य से मैंने दो बार पृथ्वी पर पूर्व में आ चुका हूँ और हनुमान जी एव परशुराम जी से मिल चुका हूँ अब आपसे तीसरी मुलाकात है महाराज अश्वस्थामा आप यह बताने का कष्ट करें कि आपके अनुभव कलयुग के विषय मे क्या है ?क्योंकि आप द्वापर से सीधे कलयुग में आये है यह आपके लिए दूसरा ही युग है जबकि परशुराम जी के लिए तीसरा एव हनुमान जी के लिए दूसरा युग है आप बताये की आपके द्वापर एव वर्तमान कलयुग में क्या फर्क समझते है? अश्वस्थामा ने कहा यमराज मैं ऋषि भारद्वाज का पौत्र द्रोण का पुत्र मेरी माता ऋषि शरद्वान की पुत्री कृपी अंगिरा मेरा गोत्र जन्म लेते ही अश्व के समान गूंजते मेरे स्वर संघर्षो एव दरिद्रता में बीता मेरा बचपन मेरे लिए पिता का द्रुपद का अपमान जन्म के साथ अमरत्व का वरदान अजेयता बल बुद्धि कौशल सारा सिर्फ एक अपराध के कारण व्यर्थ हो गया ।

मैंने छल से उल्लू एवं कौवे का आचरण करते हुए रात्रि में सोते समय पांडव कुमारों की हत्या कर दी एव ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ के शिशु का मारने की कोशिश के अपराध में घायल रक्त श्राव एव भयंकर पीड़ा को लेकर भटक रहा हूँ ।

वत्स यमराज लेकिन जब मैं कलयुग के समाज को देखता हूँ तो मुझे अपनी वेदना भूल जाता हूँ क्योकि इतने उत्तम कुल में जन्म लेने के बाद युग पराक्रम पुरुषार्थ होने के बाद एक भूल के कारण यह भयंकर भयानक वेदना का जीवन बोझ ढोने को विवश हूँ ।

वत्स यमराज मैं निवेदन करूँ तब भी आप मुझे मेरे इस पीड़ादायक शरीर से मुक्ति नही दे सकते कलयुग का लगभग प्रत्येक प्राणी प्रतिदिन कोई न कोई अपराध करता रहता है और भगवान का भी दम्भ भरता है कि वह जो कर रहा है वह धर्म सम्मत शास्त्रसम्मत है और अनेको वेदना पीड़ा को लिए मुस्कुराता रहता है इतना साहस तो किसी युग के प्राणियो में नही था विशेष कर मनुष्यो में ।

कलयुग का मानव अपने ज्ञान विज्ञान के बल पर ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने लगा है उसका कभी कभी निष्कर्ष यह है कि ईश्वरीय सत्ता नाम की कोई शक्ति है ही नही वत्स यमराज यदि
मनुष्य स्वंय को सृष्टि सत्ता का जनक और अन्वेषक मानता है और आज इतना विकास कर चुका है कि उसने स्वंय के अतिरिक्त सभी सत्ता को चुनौती देता इनकार करता रहता है लेकिन इतने ज्ञान सम्पन्न होने के बाद भी कलयुग का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी अनजानी वेदना पीड़ा दंश का शिकार है जिसका हल उसके पास है ही नही वावजूद इसके की वह वेदना पीड़ा दंश के अपने हिस्से को ढोते हुये मुस्कुराता रहे ।

यही कलयुगी साहस दृढ़ता मुझे मेरी वेदना के भूलने की प्रेरणा प्रदान करती है अश्वस्थामा एव धर्मराज के बीच वार्ता को विराज सुन रहा था फिर भी वह धर्मराज को देख रहा था परंतुअश्वस्थामा को नही देख पा रहा था।

वार्ता समाप्त हुई और धर्मराज विराज कार मैं बैठे और चल दिये रास्ते भर विराज पूछता रहा कि धर्मराज तुम किससे बात कर रहे थे कोई था भी जिससे बात कर रहे थे कि तुम्हे पागल पन का दौरा पड़ता है धर्मराज ने विराज के प्रश्नों से पिंड छुड़ाने के लिए विराज को नाराज ना करने की नियत से धर्मराज बोले महाराज मैं उचित अवसर आने पर आपको वास्तविकता से अवगत अवश्य करा दूंगा ।

विराज शांत तो हो गया किंतु उसके मन मे धर्मराज को लेकर अनेक शंकाएं उठने लगी वह घर आया धर्मराज भी आये विराज ने घर के सभी सदस्यों को धर्मराज की वार्ता का रहस्य बताते हुए धर्मराज के सामने ही सबको उससे सतर्क रहने का निर्देश दे डाला ।

धर्मराज को किसी से क्या लेना देना था उन्हें अपने उद्देश्य एव भोले नाथ के आदेश पालन तक ही सीमित रहना था वह शांत भाव से विराज को सुनते रहे।

दिन बीतने लगे विराज के परिवार का व्यवहार धर्मराज के साथ कुछ अलग हो चुका था धर्मराज भी अपने उद्देश्य की पूर्ति तक रुकना चाहते थे किसी तरह समय बीतता पहले जैसी बात नही थी।

एका एक एक दिन शाम को पूरे दिल्ली में चारो तरफ़ एक ही बात हवाओ से भी तेज बहने लगी कि भगवान गणेश अपने हर मंदिर में दुग्ध पान करने पधारे है और मात्र एक ही दिन चौबीस प्रहर ही रहेंगे पृथ्वी के उन मंदिरों में जिसे मानव ने बनवाया है और पत्थर की मूरत में स्थापित किया है गणेश जी के साथ भगवान शिव शंकर भी दुग्ध पान करेंगे अत सभी लोग लोटे में दूध लेकर चल पड़े शिवालयों की तरफ आम तौर पर शिवालयों पर किसी विशेष अवसरों पर ही भीड़ एकत्र होती है लेकिन बिना किसी अवसर के दिल्ली का हर आम खास शिवालयों में भगवान गणेश शिव को दूध पिलाने पहुँचने लगा लम्बी लम्बी कतारें लग गयी ।

विराज ने भी डॉ तन्या डॉ तरुण डॉ सुमन लता उत्कर्ष को जल्दी जल्दी घर बुलाया और बोले अरे
जल्दी जल्दी तैयार हो जाइए आज भर भगवान गणेश एव शिव शंकर शिवालयों में दूध पीने के लिए पधारे है सिर्फ आज भर का अवसर है सभी जगह लम्बी लम्बी लाइने लगी है ।

डॉ तन्या ,डॉ सुमन लता डॉ तरुण विराज एव उत्कर्ष तैयार होकर लोटे में दूध लेकर चलने के लिए निकलने ही वाले धर्मराज बोल उठे विराज जी आप सिर्फ कुछ देर मेरी बात सुन लीजिए क्योकि अब मेरे जाने का समय आ गया है और आपके संसय भ्रम को दूर करना है ।

विराज ने अपने सभी को आदेशित किया आप सभी खड़े हो जाइए आखिर देंखे की ये महोदय आज कौन सा बखेड़ा खड़ा करने वाले है धर्मराज बोले विराज आप सेना के साहसी निष्ठावान निर्भीक निडर अधिकारी रहे है अपने जीवन और मृत्यु को बहुत नजदीक से देखा है और डॉ सुमन लता डॉ तरुण डॉ तन्या हर लाचार बेवश बीमार के जीवन को बचाने का अथक प्रयास करते है इसीलिये आप लोंगो को भगवान का दर्जा प्राप्त है आप लोग कलयुग के विज्ञान एव वैज्ञानिक युग में उसके अभिन्न अंग है और आप लोग भ्रम के चल पड़े शिवालय में भगवान शिव जी एव गणेश जी को दूध पिलाने एक तरफ तो आप लोग धर्म ईश्वर को नकारने में कोई कोताही नही करते दूसरी तरफ आप लोग शिवालय में लाइन लगाने जा रहे है भगवान गणेश एव शिव जी को दूध पिलाने कैसे मैं मॉन लू की आप लोग विज्ञान एव वैज्ञानिक युग के विद्वान ज्ञानी लोग है ।

धर्मराज बोले विराज भगवान शंकर दूध नही पीते वह तो जगत कल्याण के लिए विष पान करते है गणेश जी को मोदक पसंद है दूध चढ़ाना श्रद्धा हो सकती है किंतु भय भ्रम में नही क्योकि भगवान शिव ज्योतिर्लिंगों में उसकी महत्ताअनुसार विराजते हैं विराज जी और गणेश जी उनके साथ ही सदा रहते है आप लोग विज्ञान वैज्ञानिक युग के किस दौर में जी रहे है इसी पर कलयुग का मानव कहता है कि वह विज्ञान में इतना प्रगति कर चुका है कि भगवान धर्म आस्था की धुरी को ही घुमा देगा ।

विराज ने कहा तो धर्मराज तुम कहना क्या चाह रहे हो धर्मराज बोले विराज धर्म संसय भ्रम नही पैदा करता वह तो अंधकार को समाप्त कर प्रकाशवान ऊर्जा मानवता के उद्देश्य पथ पर विखेरता है।

विराज बोले धर्मराज तुम बड़े ज्ञान विज्ञान की बाते कर रहे हो आखिर कौन हो तुम क्यो आये हो? तुम्हारा उद्देश्य क्या हो ?मुझे तो तुम पागल लगते हो धर्मरराज
धर्मराज इतना सुनते क्रोधित अवश्य हुये मगर उन्होंने उसे प्रत्यक्ष नही होने नही दिया और अपने वास्तविक स्वरूप भैंसे पर सवार न्याय दण्ड के साथ हुए बोले विराज मैं आदिवासी हूँ आदिवासी समाज की संस्कृति सांस्कार निश्चल निर्विकार निरंतर है का प्रथम और आदि पुरुष हूँ वनवासी सीधा साधा मेरा आचरण है मैं किसी भी छल छद्म प्रपंच झूठ फरेब से परे भोला भला आदि चिंतक हूँ जितने भी देव आदिवासी कबीलों के है वह मेरे ही स्वरूप है ।

तुम आदिवासी समाज के पथ प्रकाशक हो अतः तुम्हारा आचरण पूरे समाज को दिशा दशा दे सकता है कलयुग के वैज्ञानिक युग के तुम महत्वपूर्ण कर्णधारों में एक हो ज़िसे अपने कर्म त्याग द्वारा प्रमाणित भी किया है लेकिन एक भ्रम जो पता नही किस उद्देश्य से किसने प्रसारित किया है उससे तुम जैसा होनहार विद्वान प्रभावित बिना वास्तविकता समझे जाने हो गया।

वत्स इतना तो वनों में रहने वाला आदिवासी दिगभ्रमित नही होता जो बहुत शिक्षित नही होता है वह अपनी परम्पराओ को जीता है उसे अक़्क्षुण रखने का प्रायास अवश्य करता है जिससे पढ़े लिखे सभ्य समाज को वह पिछड़ा गंवार प्रतीत होने लगता है ।

जबकि उसकी आस्था समर्पण का कोई दूसरा उदाहरण नही हो सकता है विराज को वास्तविकता स्प्ष्ट दिख रही थी और हाँ विराज मैं और तुम जब रामलीला मैदान से रावण दहन के बाद लौट रहे थे तब रास्ते मे कर रोक कर जिससे मैं बात कर रहा था वह थे सप्त चिरंजीवी में अश्वस्थामा जिसे सिर्फ मैं देख रहा था तुम नही देख पा रहे थे मुझे विश्वास है कि तुम्हारे सभी शंकाओं संसय का निवारण हो चुका होगा और तुम वर्तमान अतीत एव भविष्य के सत्य से पूर्ण भिज्ञ होंगे ।

अब मेरे तृतीय पृथ्वी प्रवास का समय पूर्ण हुआ मुझे लौटना होगा डॉ तांन्या डॉ तरुण डॉ सुमन लता तो आश्चर्य से धर्मराज को देखते ही रह गए धर्मराज ने उत्कर्ष को गोद मे उठाया और आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
313 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
3336.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3336.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
बहके जो कोई तो संभाल लेना
बहके जो कोई तो संभाल लेना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
मुख पर जिसके खिला रहता शाम-ओ-सहर बस्सुम,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जिसनै खोया होगा
जिसनै खोया होगा
MSW Sunil SainiCENA
"बाजार "
Dr. Kishan tandon kranti
उदास रातें बुझे- बुझे दिन न खुशनुमा ज़िन्दगी रही है
उदास रातें बुझे- बुझे दिन न खुशनुमा ज़िन्दगी रही है
Dr Archana Gupta
छुप छुपकर मोहब्बत का इज़हार करते हैं,
छुप छुपकर मोहब्बत का इज़हार करते हैं,
Phool gufran
*आजादी की राखी*
*आजादी की राखी*
Shashi kala vyas
कोई यहां अब कुछ नहीं किसी को बताता है,
कोई यहां अब कुछ नहीं किसी को बताता है,
manjula chauhan
Insaan badal jata hai
Insaan badal jata hai
Aisha Mohan
खूब लगाओ डुबकियाँ,
खूब लगाओ डुबकियाँ,
sushil sarna
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
54….बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसम्मन मुज़ाफ़
sushil yadav
"स्वतंत्रता के नाम पर कम कपड़ों में कैमरे में आ रही हैं ll
पूर्वार्थ
आप, मैं और एक कप चाय।
आप, मैं और एक कप चाय।
Urmil Suman(श्री)
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
इंतजार बाकी है
इंतजार बाकी है
शिवम राव मणि
नारी का सम्मान 🙏
नारी का सम्मान 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
चलो आज कुछ बात करते है
चलो आज कुछ बात करते है
Rituraj shivem verma
फ़ुरसत से निकालों वक्त, या अपना वक्त अपने पास रखो;
फ़ुरसत से निकालों वक्त, या अपना वक्त अपने पास रखो;
ओसमणी साहू 'ओश'
*प्यार का रिश्ता*
*प्यार का रिश्ता*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
जाने जिंदगी में ऐसा क्यों होता है ,
जाने जिंदगी में ऐसा क्यों होता है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
विचार, संस्कार और रस-4
विचार, संस्कार और रस-4
कवि रमेशराज
हे राम तुम्हारा अभिनंदन।
हे राम तुम्हारा अभिनंदन।
सत्य कुमार प्रेमी
जिंदगी गुज़र जाती हैं
जिंदगी गुज़र जाती हैं
Neeraj Agarwal
सरस्वती वंदना-4
सरस्वती वंदना-4
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय*
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गुरू
गुरू
Shinde Poonam
हकीकत की जमीं पर हूँ
हकीकत की जमीं पर हूँ
VINOD CHAUHAN
ଅର୍ଦ୍ଧାଧିକ ଜୀବନର ଚିତ୍ର
ଅର୍ଦ୍ଧାଧିକ ଜୀବନର ଚିତ୍ର
Bidyadhar Mantry
Loading...