धर्मगुरु.. .
धर्मगुरू…….(कहानी)
दिन भर की चिलचिलाती धूप के बाद शाम की ठण्डकएक अजीब सा शुकुन देती हैमन यही कहता कुछ पल ठहर कर इस एहसास को समेट लें! क्योंकि सुबह 6 बजे से ही सूर्य देवता सर पर सवार हो जाते हैं फिर दिन भर अपनी ड्यूटी बड़ी ही ईमानदारी से निभाते हैं!कोई कोताही नहीं ना हम मनुष्यों की भाँति किसी भी तरह का आलस! रितु की छुट्टियाँ कब बीत गयीं ऐसे में कुछ मालूम ही नहीं चला! इतनी तपन देखकर ही कहीं जाने की इच्छा नहीं होती पूरा दिन बीत जाता घर के अन्दर! आज की शाम का ही रिजर्वेशन था अब ना चाहते हुए भी अपनों से दूर होना ही था अनमने मन से पैकिंग शुरु की शाम 6.30 की ट्रेन थी जैसे-जैसे समय करीब आता गया मन में अजीब सी बेचैनी कि अब तो जाना ही होगा! वैभव और सिया स्टेशन पर छोड़ने आये रितु को! देखते-देखते ट्रेन का एनाउन्समेण्ट शुरु हो गया और कुछ ही पलों में ट्रेन आ गयी! रितु ट्रेन में बैठकर अपने भाइयों से विदा ली और ट्रेन अपनी रफ्तार में चल पड़ी सभी अपने पीछे छूट गये!कुछ देर तक रितु अपनों की यादों को तह कर मन के कमरे में सुरक्षित रखती रही कुछ देर बाद रितु ने देखा मोबाइल की बैटरी कम है तो सोचा चार्ज कर लूँ लम्बा सफर है जब तक पहुँचना नहीं होगा घर से फोन आते रहेंगे और मोबाइल ऑफ होने पर चिन्ता होगी घर से! वह अपनी सीट से उतर कर सामने वाली सीट पर बैठकर मोबाइल चार्ज करने लगी! अगला स्टेशन आ गया जिस महाशय की वो सीट थी वो आ गये और रितु को बैठा देख उन्होंने कहा-आपकी सीट? रितु ने जवाब दिया ऊपर है मोबाइल चार्ज करना है इसलिए यहाँ! तब उन महाशय ने कहा कोई बात नहीं चार्ज कर लीजिए! महाशय अपना बैग रख एक किनारे बैठ गये और रितु अपने मोबाइल को फुल करने में व्यस्त महाशय धीरे-धीरे रितु से बात करने लगे परिचय वगैरह-वगैरह आदि कई चीज जानने की कोशिश! लेकिन रितु बहुत चालाक वह अजनबी इंसान को अपनी सच्चाई क्यों बताये? इधर-उधर पढ़ा दिया! रितु ने उनसे परिचय पूछा तो बोले मैं आर्मी में धर्मगुरु हूँ हर ढाई साल पर मेरी पोस्टिंग अलग-अलग शहर में होती है मैं सैनिकों के मोटीवेट करता रहता हूँ उनके अंदर जब कभी हीनभावना आती है तो उनको प्रोत्साहित करता हूँ उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करता हूँ! रितु ने पूछा तब तो ज्योतिष का भी ज्ञान होगा आपको?महाशय ने कहा-हाँ ज्योतिष और शास्त्री दोनों की उपाधि है मेरे पास! और दो-चार कुण्डलियाँ भी दिखाने लगे! रितु को अपने बारे में भी जानने की आवश्यकता हुई लेकिन रितु को धर्मगुरु की नियत साफ नहीं लग रही थी! खैर कोई नहीं रितु ने जानने की कोशिश नहीं की बस अपने गन्तव्य तक पहुँचने की धुन में थी धर्मगुरु धर्म की आड़ में शायद कुछ और ही करते हैं ये बात रितु के मन में बैठने लगी!हालांकि उन महाशय ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा लेकिन शक्ल से ही व्यक्ति की पहचान हो जाती है! रितु अपना मोबाइल बिना फुल किये अपनी सीट पर सोने चली गयी रात का सफर समाप्त हो गया सुबह हो गयी करीब 10 बच गया और गर्मी के कारण अपर सीट पर बुरा हाल?महाशय ने कहा नीचे आकर बैठ जाइये अब रितु को ये गर्म हवा के थपेड़े बर्दाश्त होने से रहे तब कुछ देर बाद नीचे आकर बैठ गयी और वो महाशय फिर अपनी बातों की पिटारा लेकर बैठ गये!बार-बार रितु से अपने घर चलने को कह रहे थे कि चलो मैं तुम्हें बाइक से तुम्हारे रुम पर छोड़ दूँगा मेरी बिटिया को भी थोड़ा मोटीवेट कर दो पढ़ाई के लिए आदि तरह-तरह की बातें रितु ने टोपी पहनायी अब बेचारा क्या करता फिर रही सही कसर महाशय केला और नमकीन ले आये रितु से कहा खा लो! भला रितु?? ऐसे व्यक्ति का सामान जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम! रितु ने बड़ी सौम्यता से कहा -मैं बिना नहाये कुछ खाती नहीं हूँ महाशय धरे के धरे रह गये बोले बड़ी पुजारिन हो आप! रितु ने कहा बस श्रद्धा है बाकी कोई पूजा-पाठ नहीं! भला रितु पर उनकी बातों का असर कहाँ होने वाला था लेकिनअब रितु को अपना उल्लू सीधा करवाना था उन महाशय से कहा महाशय जब तुमको बुखार लगा है तो हम कुछ फायदा ही ले लें रितु ने महाशय से कहा -क्या आप हमारा बैग ऊपर से उतार देंगे महाशय ने कहा -परेशान मत होइये स्टेशन आने पर मैं उतार दूँगा! रितु निश्चिन्त हो गयी और मन ही मन कहा -वाह! धर्म गुरु! उसके बाद कुछ देर महाशय का प्रवचन सुनती रही जैसे तैसे स्टेशन आ गया रितु का बैग महाशय ने उतारा इतना ही नहीं ट्रेन से भी नीचे उतारा और प्लेटफार्म की सीढ़ियों से नीचे उतार कर ऑटो के पास भी ले आये महाशय तो प्रेम में अन्धे हो गये थे कि शायद तरश खाकर रितु उनके आग्रह को स्वीकार कर ले और उनके साथ उनके घर चले! रितु ने अपना ऑटो किया और चल पड़ी वो अाग्रह करते ही रह गये और जाते-जाते कहने लगे आपसे विदा लेने का दिल ही नहीं कर रहा है! रितु मन ही मन मुस्कुराई और कहा बेटा-कुली का काम तो तुमने कर ही दिया
है मेरे 100रुपये बच गये तुम भी क्या याद करोगे कोई मिली थी!रितु ने अपना उल्लू सीधा किया और कहा चल हट! तेरे जैसे बहुत धर्मगुरुओं को मैने देखा है! धर्म की आड़ में शर्म बेच खाते हैं.. औरवह अपने रुम पर आ गयी दिन भर यही सोचती रही ये धर्मगुरु और पुजारी जब ऐसी घिनौनी हरकतें करेंगे तो देश का क्या होगा! सबसे पहले तो इनको फाँसी देनी चाहिए वरना हर रोज नये आशाराम जन्म लेते रहेंगे! इनकी हवस का शिकार ना जाने कितनी लड़कियाँ और औरतें हर रोज होती हैं!.
शालिनी साहू
ऊँचाहार,रायबरेली(उ0प्र0)