धरा
मुक्तक
धधकती धरा धैर्य खोने लगी है।
हृदय से कटुक आज होने लगी है।
सहन कर्म कर अब मनुज के अनैतिक।
प्रकृति दंड देकर डुबोने लगी है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)
मुक्तक
धधकती धरा धैर्य खोने लगी है।
हृदय से कटुक आज होने लगी है।
सहन कर्म कर अब मनुज के अनैतिक।
प्रकृति दंड देकर डुबोने लगी है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)