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17 Jun 2020 · 1 min read

धरा पर दोहे

धरा पर आज के दोहे
★★★★★★★★

धाम धरा धन धृत्वरी,धारयिता धनवान।
धामक धूमक धाड़ना,धेना धुरपद ध्वान।।

धाम धरा कल्याण का,अनुपम अतुलित रूप।
जब चाहो तब छाँव हैं, जब चाहो तब धूप।।

पुण्य धरा से ही मिलें,रुचिकर अतुल अनाज।
कल भी यह सुरभित करें, और सुधारे आज।।

धरा भरे भंडार सब,देती सब सुखसार।
पुत्र सभी को जानकर,करती है उपकार।।

मत करना धूमिल धरा,रखना इसको साफ।
वरना दे विपदा कठिन,नहीं करेगी माफ।।
★★★★★★★★★★★★★★★★
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 266 Views
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