धरा तेरे रूप अनेक
हरी भरी धरा हमारी
रूप अनेक लिए हुए
कभी जल से भरी भरी
कभी पतझड़ से उड़ी उड़ी
आया बसंत जो झूम के
फुलवारी सी बनी धरा
मनमोहक रंग के
दृश्य अनेक
कहीं लाल पीले
हरे नारंगी तो
सतरंगी रूप अनेक
आयो बसंत
बगरो बसंत
सुन्दर बसंत
नाचो बसंत
गाओ बसंत
घर घर में
मनाओ बसंत
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल